कोशिका संरचना और कोशिका के अंग ( Cell structure and cell organs )
प्लाज्मा झिल्ली
- यह झिल्ली पदार्थों के भीतर आने या बाहर जाने पर नियंत्रण रखती है। यह प्रोटीन एवं लिपिड की बनी होती है।
कोशिका द्रव्य
- यह कोशिका के अंदर का तरल पदार्थ है जो पारदर्शी व चिपचिपा होता हैं।
केन्द्रक
कोशिका के मध्य में एक केंद्रक होता है, जो सभी कोशिकीय क्रियाओं का नियंत्रण केंद्र होता है। केन्द्रक में केंद्रिका तथा क्रोमोटीन होते हैं। यही क्रोमोटीन कोशिका विभाजन के समय क्रोमोसोम में रूपांतरित हो जाती हैं। क्रोमोसोम में बहुत से जीन होते हैं।
- कोशिका में केंद्रक की खोज रॉबर्ट ब्राउन ने 1831 में की थी।
- केन्द्रक के अंदर गाढ़ा अर्द्धतरल द्रव्य भरा रहता है, जिसे केन्द्रक द्रव्य कहते हैं। केन्द्रक द्रव्य में महीन धागों की जाल जैसी रचना पायी जाती है
- जिसे क्रोमेटीन (नेटवर्क) कहा जाता है।
- केंद्रक डीएनए और प्रोटीन का बना होता है।
- डीएनए (DNA) आनुवंशिक लक्षणों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक ले जाते हैं।
- कोशिका विभाजन के समय क्रोमेटीन जालिक के धागे अलग होकर छोटी-मोटी छड़ जैसी रचना में बदल जाते हैं, जिन्हें गुणसूत्र (Chromosomes) कहते हैं।
- डीएनए के अणु में कोशिका के निर्माण एवं उसके संगठित होने की सभी आवश्यक सूचनाएं संग्रहित होती हैं। डीएनए का क्रियात्मक खंड जीन कहलाता है। इसलिए डीएनए को आनुवंशिक पदार्थ तथा जीन को आनुवंशिक इकाई (Hereditary) कहते हैं |
- केन्द्रक कोशिका की रक्षा करता है और कोशिका विभाजन में भाग लेता है।
- यह प्रोटीन संश्लेषण हेतु आवश्यक कोशिकीय आरएनए (RNA) को उत्पन्न करता है।
- केन्द्रिका (Nucleolus) में आरएनए का संश्लेषण होता है।
नाभिकीय अम्ल
- नाभिकीय अम्ल बहुलक मैक्रोअणु (अर्थात् विशाल जैव-अणु) होता है, जो एकलकिक न्यूक्लियोटाइड्स की शृंखलाओ से बनता है। ये अणु आनुवंशिक सूचना पहुंचाने का काम करते हैं. साथ ही ये कोशिकाओं का ढांचा भी बनाते हैं। सामान्यतया प्रयोग होने वाले नाभिकीय अम्ल हैं डीएनए या डीऑक्सी राइबो नाभिकीय अम्ल एवं आरएनए या राइबो नाभिकीय अम्ल । नाभिकीय अम्ल प्राणियों में सदा ही उपस्थित होता है, क्योंकि यह सभी कोशिकाओं और विषाणुओं तक में होता है। नाभिकीय अम्ल की खोज फ्रेडरिक मिशर ने की थी।
अंतर्मेद्रव्य जालिका
- यह जालिका कोशिकाद्रव्य में आशयों और नलिकाओं के रूप में फैली रहती है। इसकी स्थिति सामान्यतया केंद्रकीय झिल्ली तथा द्रव्यकला के बीच होती है, किंतु यह अकसर संपूर्ण कोशिका में फैली रहती है। यह जालिका दो प्रकार की होती है : चिकनी सतहवाली और खुरदुरी सतहवाली। इसकी सतह खुरदुरी इसलिए होती है कि इसपर रिबोसोम के कण विखरे रहते हैं। इसके अनके कार्य बतलाए गए हैं, जैसे द्रव्यों का प्रत्यावर्त, अंतःकोशिकीय अभिगम, प्रोटोन संश्लेषण इत्यादि?
माइटोकॉन्ड्रिया
इसकी खोज अल्टमेन (Altman) ने 1886 ई. में की थी। यह कोशिका द्रव्य में पायी जाती है। इसमें भोजन का संपूर्ण ऑक्सीकरण होता है, जिससे कोशिका को ऊर्जा प्राप्त होती है। इसलिए इसे कोशिका का पावर हाउस (Power House) भी कहा जाता है। 36ATP अणु जो एक ग्लूकोज अणु के टूटने से बनते हैं, उनमें से 34ATP माइटोकॉन्ड्रिया में ही बनते हैं।
- गाल्जीकाय चपटी झिल्लियों की एक संरचना होती है। इसे कोशिका का उत्सर्जन अंग कहा जाता है।
हरित लवक
- ये केवल प्रकाश संश्लेषित पादप कोशिकाओं में ही पाये जाते हैं क्योंकि ये प्रकाश संश्लेषण की क्रिया का केन्द्र होते हैं।
रिक्तकाएं
यह एकल झिल्ली से घिरी छोटी सैक होती हैं। रिक्तकाओं में सेल सैप होता है जो पानी, खनिज लवण, शर्करा, पिगमेंट्स और इंजाइम का बना होता है।
- रिक्तकाएं पादप और जीव दोनों कोशिका में पाया जाता है।
- बड़ी रिक्तकाओं के मौजूद होने से कोशिका का परासरणी दाब बढ़ जाता है।
कोशिका भित्ति
- यह प्लाज्मा झिल्ली के बाहर की परत होती है, जो प्रायः पादप कोशिकाओं में पायी जाती है और यह सेलूलोज की बनी होती है। यह जीवाणु व हरे-नीले शैवाल की कोशिकाओं में मौजूद होती है।
राइबोसोम
- केन्द्रक के बाहर जालिका रूपी संरचनाएं होती हैं, जिन्हें अंतरप्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic Raticulum) कहते हैं। कुछ जालिकाओं के किनारे राइबोसोम पाये जाते हैं, जो कोशिका में प्रोटीन संश्लेषण का कार्य संपादित करते हैं। राइबोसोम, प्रोकैरियोटिक और यूकैरियोटिक दोनों प्रकार की कोशिकाओं में पाये जाते हैं।
लाइसोसोम
- कोशिका में लाइसोसोम नामक एक अंगक होता है जिसमें अपघटन एंजाइम की थैलियां होती हैं जो बहुत सारे पदार्थ को अपघटित करती हैं। इसे आत्महत्या की थैली भी कहा जाता है।
सेंट्रोसोम
- ये केंद्रक के समीप पाए जाते हैं। इनके एक विशेष भाग को सेंट्रोस्फीयर कहते हैं, जिसके भीतर सेंट्रिओलों का एक जोड़ा पाया जाता है। कोशिकाविभाजन के समय ये विभाजक कोशिका के ध्रव का निर्धारण और कुछ कोशिकाओं में कशाभिका जैसी संरचनाओं को उत्पन्न करते हैं।
गोल्गी यंत्र
- इस अंग का यह नाम इसके आविष्कारक, कैमिलो गोल्गी, के नाम पर पड़ा है, जिन्होंने 1898 में सर्वप्रथम इसकी खोज की। यह अंग साधारणतया केंद्रक के समीप, अकेले या समूहों में पाया जाता है। इसकी रचना तीन तत्वों या घटकों द्वारा हुई होती है रू सपाट कोश, बड़ी बड़ी रिक्तिकाएं तथा आशय । यह एक प्रकार के जाल जैसा दिखलाई देता है। इनका मुख्य कार्य कोशिकीय स्रवण और प्रोटीनों, वसाओं तथा कतिपय किण्वों का भडारण करना है।
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