Maisoor Aur Angrejo ke beech Yuddh
मैसूर और अंग्रेजो के बीच युद्ध ( War between Mysore and British in Hindi )
- 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में दक्षिण में अंग्रेजों को चुनौती देने के लिए मैसूर में एक नई शक्ति का उदय हुआ। इस शताब्दी के मध्य में चिका कृष्णराज मैसूर का नाममात्र का शासक था। हैदरअली इस समय मैसूर राज्य की सेना में नायक के पद पर कार्यरत था।
- हैदर अली- हैदर अली का जन्म 1722 ई. में हुआ था। मैसर राज्य की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। नन्दराज का आतंक व्याप्त था। राजमाता की सलाह से हैदर अली ने नन्दराज को परास्त कर बन्दी बना लिया। 1761 ई. में राज्य की सत्ता अपने हाथ में ले ली व समस्त कार्य मैसूर राजा के नाम से करता था। 1776 ई. में मैसूर के राजा की मृत्यु के बाद उसने स्वयं को मैसूर का राजा घोषित कर दिया। उसके राज्य के विस्तार व शक्ति बढाने में तात्कालिक परिस्थितियों ने काफी सहायता की। उसने बेदूनूर, कोचीन, पालघाट, कालीकट, कन्नड़, पोलीगारों, मालबार, सुण्डा सीरी, गँटी, कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों के बीच के प्रदेश मराठों से छीन लिये।
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प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध (1767-69 ई.)-
- हैदर की बढ़ती हुई शक्ति को अंग्रेज अपने लिए खतरा समझते थे। अत: वे हैदर से लड़ने का बहाना ढूँढने लगे। 1767 ई. के युद्ध में जब हैदर और निजाम की संयुक्त सेना अंग्रेजों पर टूट पड़ी, जिससे उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। निजाम के साथ छोड़ने पर हैदरअली अकेला अंग्रेजों पर टूट पड़ा व उनकी रसद लाइन काट दी। विवश होकर अंग्रेजों ने 9 अप्रैल, 1769 ई. में हैदर से मद्रास की सन्धि कर ली। इस सन्धि के कारण ही प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध समाप्त हो गया।
द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध (1780-84 ई.)-
- मद्रास की सन्धि से हैदर को आशा थी कि अब इस क्षेत्र में शान्ति रहेगी, किन्तु ऐसा नहीं हुआ। अंग्रेजों ने मार्च, 1779 ई. में माही के बन्दरगाह पर अधिकार कर लिया, जो हैदर के शासन के अन्तर्गत था।
- 1780 ई. में हैदर ने श्रीरंगपट्टम से बाहर निकलकर अंग्रेजों के ठिकानों पर आक्रमण करना आरम्भ कर दिया। अंग्रेज सेनानायक मुनरो ने अपने सहयोगी बेली तथा क्लेचर को हैदर के विरुद्ध भेजा। सितम्बर, 1780 ई. में अरनी नामक स्थान पर हुए युद्ध में क्लेचर मारा गया और बेली को घायल अवस्था में बन्दी बना लिया गया। अंग्रेजों की विफलता से चिन्तित होकर वारेन हेस्टिंग्ज ने सर आयरकूट को आवश्यक सेना देकर भेजा। जून, 1781 ई. में आयरकूट ने पोर्टनोवो नामक स्थान पर हैदर को पराजित किया। टीपू इस समय शान्ति चाहता था, उसने 7 मार्च, 1784 ई. को अंग्रेजों के साथ मंगलोर की संधि कर ली।
तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध (1790-92 ई.)-
- यह युद्ध 1790 ई. में टीपू सुल्तान और अंग्रेजों के बीच लड़ा गया। द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध के समय हेस्टिंग्स ने गुण्ट्रर देकर ही निजाम को अपने पक्ष में कर लिया था परन्तु बाद में कार्नवालिस ने उसे अपने अधीन कर लिया और निजाम को यह आश्वासन दिया कि इसके बदले वह उसे टीपू द्वारा छिने गए सभी क्षेत्रों को वापस दिलाने की कोशिश करेगा। कार्नवालिस के इस कार्य से मैसूर के शासक टीपू सुल्तान और अंग्रेजों के बीच वैमनस्य उत्पन्न हो गया।
- तृतीय युद्ध का कारण टीपू सुल्तान द्वारा ट्रावनकोर के हिन्दू राजा पर आक्रमण करना था। ट्रावनकोर का हिन्दू शासक अंग्रेजों का संरक्षित था व टीपू के आक्रमण की स्थिति में अंग्रेजों ने उसे सहायता दी। अतः तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध का सूत्रपात हुआ।
- जब अंग्रेजों का अधिकार राजधानी श्रीरंगपट्टम पर हो गया तब विवश होकर 1792 ई. में टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों के साथ संधि कर ली और तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध का अंत हो गया।
चतुर्थ आंग्ल-मैसूर-
- यह युद्ध टीपू सुल्तान व अग्रेजों के मध्य 1799 ई. में लड़ा गया। चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध का तात्कालिक कारण टीपू सुल्तन द्वारा वेलेस्ली की सहायक संधि के प्रस्ताव को अस्वीकार कर देना था। टीपू के मना करने के बाद मार्च, 1799 ई. में वलेस्ली ने उसके विरुद्ध युद्ध की शुरुआत कर दी। यह अन्तिम निर्णायक युद्ध था। टीपू सुल्तान ने अपनी पूरी शक्ति के साथ मुकाबला किया किन्तु युद्ध में वह मारा गया और युद्ध समाप्त हो गया।
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