Parliamentary privileges in Hindi
संसदीय विशेषाधिकार क्या होता है।
विशेषाधिकार
- एक सांसद या विधायक होना सिर्फ जनप्रतिनिधि होना नहीं है अपितु ये लोग संविधान के पालक और नीतियाँ/कानून बनाने वाले लोग भी हैं. कार्यपालिका के साथ मिलकर यही लोग देश का वर्तमान और भविष्य तय करते हैं. इन पर्दा की महत्ता और निष्ठा को देखते हुए संविधान ने इन्हें कुछ विशेषाधिकार दिए हैं. संविधान के अनुच्छेद 105 और अनुच्छेद 194 के खंड 1 और खंड 2 के तहत विशेषाधिकार का प्रावधान किया गया है. भारतीय संविधान में विशेषाधिकार के विषय इंग्लैंड के संविधान से लिए गये हैं.
- संविधान के अनुच्छेद 105 (3) और 194 (3) के तहत देश के विधानमंडलों को वही विशेषाधिकार मिले हैं जो संसद को मिले हैं. संविधान में यह स्पष्ट किया गया है कि ये स्वतंत्र उपबंध हैं. यदि कोई सदन विवाद के किसी भाग को कार्यवाही से हटा देता है तो कोई भी उस भाग को प्रकाशित नहीं कर पायेगा और यदि ऐसा हुआ तो संसद या विधानमंडल की अवमानना मानना जाएगा. ऐसा करना दंडनीय है. इस परिस्थिति में अनुच्छेद 19(क) के तहत वोतने की आजादी (freedom of speech and expression) के मूल अधिकार की दलील नहीं चलेगी,
- हालांकि बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि भले ही विशेषाधिकार के मामले अनुच्छेद 19(क) के बंधन से मुक्त हों लेकिन यह अनुच्छेद 20-22 और अनुच्छेद 32 के अधीन माने जायेंगे.
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विशेषाधिकार के प्रकार
विशेषाधिकार के मामलों को दो भागों में बाँटा जा सकता है –
- हर सदस्य को मिला व्यक्तिगत विशेषाधिकार
- संसद के प्रत्येक सदन को सामूहिक रूप से मिला विशेषाधिकार
व्यक्तिगत विशेषाधिकार
- सदस्यों को सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 135 (क) के तहत गिरफ्तारी से छूट मिलती है. इसके तहत सदस्य को समितियों की बैठक के 40 दिन पहले या 40 दिन बाद तक गिरफ्तारी से छट मिलती है. यह छट सिर्फ सिविल मामलों में मिलती है. आपराधिक मामलों के तहत यह छूट नहीं मिलेगी.
2. जब संसद सत्र चल रहा हो तो सदस्य को गवाही के लिए बुलाया नहीं जा सकता.
3. संसद के सदस्य द्वारा संसद में या उसकी समिति में कही गई किसी बात के लिए न्यायालप में चुनौती नहीं दी जा सकती.
लेकिन यहाँ यह जानना जरुरी है कि सदस्यों को मिले ये विशेषाधिकार तब तक लागू रहेंगे जबतक वह संसद या सदन के हित में हो. पानी सदस्य सदन की प्रतिष्ठा की परवाह किये बिना अपनी इच्छानुसार कुछ भी कहने का हकदार नहीं है.
सामूहिक रूप से मिला विशेषाधिकार
- चर्चाओं और कार्यवाहियों को प्रकाशित करने से रोकने का अधिकार.
- अन्य व्यक्तियों को अपवर्जित या प्रतिबंधित करने का अधिकार.
- सदन के आंतरिक मामलों को निपटाने का अधिकार
- संसदीय कदाचार को प्रकाशित करने का अधिकार.
5. सदस्यों और बाहरी लोगों को सदन के विशेषाधिकारों को भंग करने के लिए दंडित करने का अधिकार.
अन्य अधिकार
- इसके अलावा भी सदनों के भीतर कुछ विशेषाधिकारों की बात करें तो सदनों के अध्यक्ष और सभापति को किसी अजनबी को सदन से बाहर जाने का आदेश देने का अधिकार है. सदन के कार्यवाहियों को सुचारू रूप से चलाने और विवाद की स्थिति में बिना न्यायालय के दखल के आंतरिक तौर पर निपटाने का अधिकार भी है. यानी संसद की चारदीवारी के भीतर जो कहा या किया जाता है, उसके बारे में कोई भी न्यायालय जाँच नहीं कर सकता.
- एक और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि भारतीय न्यायालयों ने भी समय-समय पर स्पष्ट किया है कि संसद या राज्य विधान मंडलों के किसी सदन को यह निर्णय लेने का अधिकार है कि किसी मामले में सदन या सदस्य के Parliamentary Privilege का उल्लंघन हुआ है या नहीं,
विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव कैसे लाया जाता है ?
- नियम 222 :- लोकसभा के नियम 222 के तहत कोई भी सदस्य अध्यक्ष की अनुमति से कोई भी प्रश्न उठा सकता है जिसमें उसे लगता है कि किसी सदस्य या सभा या समिति के विशेषाधिकार का हनन हुआ है.
- नियम 223 :- नियम 223 के तहत किसी भी सदस्य को, जो विशेषाधिकार का प्रश्न उठाना चाहता है, लिखित सूचना लोक सभा महासचिव को उसी दिन देनी होती है जिस दिन प्रश्न उठाना होता है. यदि प्रश्न किसी साक्ष्य पर आधारित हो तो सूचना के साथ साक्ष्य भी देना होता है.
- नियम 224 :- हालाँकि विशेषाधिकार का प्रश्न उठाने के साथ कुछ शर्ते भी जुड़ी हुई हैं जिनकी चर्चा लोकसभा के नियम 224 में की गई है. पहली, इसके तहत एक ही बैठक में एक से अधिक प्रश्न नहीं उठाये जायेंगे. दूसरी, जो भी प्रश्न उठाया. जायेगा वह हाल ही में उठाये गए किसी खास विषय तक सीमित हो और उस विषय में सभा का हस्तक्षेप जरूरी है.
- नियम 225 :- लोक सभा में Parliamentary Privilege से जुड़ी प्रक्रिया की चर्चा लोकसभा के नियम 225 से 228 के तहत की गई है. नियम 225 के अनुसार किसी भी सदस्य द्वारा विशेषाधिकार हनन का नोटिस देने के बाद यदि लोकसभा अध्यक्ष उसपर अपनी सहमति जताते हैं तो उसके बाद नियम के अनुसार सदन में उस सदस्य का नाम पुकारा जाता है.इसके बाद सम्बंधित सदस्य Parliamentary Privilege के मुद्दे पर अपनी सफाई रखते हैं. लेकिन अगर लोकसभा अध्यक्ष को लगता है कि सम्बंधित विषय विशेषाधिकार हनन की शर्तों को पूरा नहीं करता है तो वह नियमों का हवाला देते हुए उसे सहमति देने से इनकार कर सकते हैं. इसके साथ ही यदि अध्यक्ष को लगता है कि मामला बहुत गंभीर है या इस पर देर नहीं की जा सकती है तो वह सदन में प्रश्नकाल के खत्म होने के बाद किसी भी बैठक के दौरान विशेषाधिकार के प्रश्न उठाने की अनुमति दे सकते हैं.
- अगर सदन के भीतर विशेषाधिकार प्रश्न उठाने का विरोध किया जाता है तो उस स्थिति में अध्यक्ष उन सदस्यों को, जो इसकी अनुमति चाहते हैं, अपने स्थान पर खड़े होने के लिए कहते हैं. यदि कम-से-कम 25 सदस्य इसके पक्ष में खड़े होते हैं तो अध्यक्ष उसपर अपनी अनुमति दे देते हैं. लेकिन 25 से कम सदस्य खड़े होते हैं तो अध्यक्ष द्वारा अनुमति नहीं दी जाती है.
- नियम 226 :- इसके साथ ही नियम 226 में यह प्रावधान है कि अगर अध्यक्ष द्वारा अनुमति दे दी जाती है तो सभा उस प्रश्न पर विचार करती है. उसके बाद उस प्रश्नको विशेषाधिकार समितिको सौंप दिया जाता है.
- नियम 227 :- नियम 227 के अनुसार लोकसभा अध्यक्ष द्वारा Parliamentary Privilege से जुड़े किसी भी सवाल को जाँच, अनुसंधान या प्रतिवेदन के लिए विशेषाधिकार समिति को सौंपा जा सकता है. इसके बाद समिति उस सौंपे गये प्रत्येक प्रश्न की जाँच करेगी और सभी मामलों में तयों के मुताबिक पह निर्धारित करेगी कि संसदीय विशेषाधिकार (Parliamentary Privilege) का उल्लंघन हुआ है या नहीं और यदि हुआ है तो इसका स्वरूप क्या है और किन परिस्थतियों में हुआ है. पूरी जाँच करने के बाद समिति अपने विवेक के अनुसार सिफारिश करती है. इसके अलावा समिति नियमों के अधीन रहते हुए यह राय भी दे सकती है कि उसकी सिफारिशों को लागू करने के लिए किस प्रक्रिया का पालन किया जाए.
- नियम 228 ;- नियम 228 के तहत लोक सभा अध्यक्ष को यह भी शक्ति प्राप्त है कि वह विशेषाधिकार समिति में या विशेषाधिकार से जुड़े किसी भी मामले पर अपनी राय दे सकते हैं.
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