शारीरिक विकास की परिभाषा, महत्व, नियम और प्रभावित करने वाले कारक | ExamSector
शारीरिक विकास की परिभाषा, महत्व, नियम और प्रभावित करने वाले कारक

शारीरिक विकास की परिभाषा, महत्व, नियम और प्रभावित करने वाले कारक

sharirik vikas ki paribhasha, mahatva or niyam

शारीरिक विकास :

  • बालक का शारीरिक विकास उसके व्यक्तित्व का आधार है। मनोवैज्ञानिक भी यह मानते हैं कि ‘स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन निवास करता | वृद्धि व विकास की यह दर जीवन की भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में भिन्न-भिन्न होती है | गर्भावस्था एवं शैशवावस्था के बाद किशोरावस्था में ही वृद्धि व विकास की दर तीव्रतम होती है | इसे किशोरावस्था का वृद्धि स्फुरण (Growth spurt) भी कहते हैं । यह वृद्धि स्फुरण, बालक-बालिका के लैंगिक दृष्टि से परिपक्व होने से पहले एक या दो वर्ष से लेकर परिपक्व होने के बाद छः मास से एक वर्ष तक रहता है |
  • बालक-बालिका में वृद्धि स्फुरण का समय भिन्न-भिन्न होता है। बालिकाओं में वयः संधि (Puberty) की अवस्था बालकों से पहले अर्थात् 10-12वें वर्ष की उम्र के दौरान ही आ जाती है। बालिकाओं में वृद्धि स्फुरण 11.5 वर्ष के आस-पास प्रारम्भ होकर 12.5वें वर्ष में अपने शिखर पर पहुँचता है। इसके बाद वृद्धि दर धीमी पड़ जाती है व धीरे-धीरे 15वें व 16वें वर्ष के बीच रूक जाती है | बालकों में वृद्धि स्फुरण 10.5 से 14.5 वर्ष के बीच शुरू होकर 15.5वें वर्ष में शिखर पर पहुँचता है तथा तत्पश्चात् वृद्धि दर धीमे पड़कर 19-20 वर्ष के बीच जाकर रूक जाती है |

किशोरावस्था के शारीरिक परिवर्तन निम्नानुसार हैं:

1. लम्बाई :

  • नौ से दस वर्ष की उम्र के दौरान लड़के व लड़कियों का कद लगभग बराबर सा रहता है (चित्र 4.4) | तत्पश्चात् 10-14 वर्ष के बीच लड़कियों की लम्बाई में तीव्र वृद्धि होती है जो धीमी गति से 16-18 वर्ष तक होती रहती है | लड़कों की लम्बाई की तीव्र वृद्धि दर औसतन 12वें से 15वें वर्ष के बीच होती है जो 16वें वर्ष में धीमी होकर 20-22 वर्ष पर आकर रूक जाती है। इस प्रकार लड़कियाँ अपनी परिपक्व लम्बाई पर 18वें वर्ष में तथा लड़के 20-22वें वर्ष के बीच पहुँचते हैं| देर से परिपक्व होने वाले किशोर-किशोरी जल्दी परिपक्व होने वाले किशोर-किशोरियों की परिपक्व लंबाई पूरी होने के बाद भी बढ़ते रहते हैं |

शारीरिक विकास

2. भार :

  • किशोरावस्था में भार में वृद्धि केवल वसा की वृद्धि से ही नहीं होती बल्कि अस्थि और पेशी के ऊतकों की वृद्धि से भी होती है | यौवनारम्भ में अस्थियाँ न केवल लंबी हो जाती हैं बल्कि आकृति, अनुपात और आंतरिक रचना में भी बदल जाती हैं | सत्रह वर्ष की अवस्था तक लड़कियों की हडिडयाँ आकार और विकास की दृष्टि से परिपक्व हो जाती हैं | लड़कों में अस्थि पंजर का विकास लगभग दो वर्ष बाद पूरा होता हैं | लड़कियों में भार की वृद्धि प्रथम रजस्त्राव के ठीक पहले और ठीक बाद में होती है । यह समय अंतराल 11-15 वर्ष का होता हैं | इसी प्रकार लड़कों में अधिकतम भार वृद्धि 13वें से 16वें वर्ष में देखी जाती है | इसी कारण 10-15 वर्ष के बीच लड़कियों का अपनी आयु के लड़कों से प्राय: अधिक भार होता है, लेकिन पंद्रह के बाद उसका विपरीत होता है |

3. शारीरिक अनुपात में परिवर्तन :

  • यद्यपि यौवनारम्भ होने पर शरीर बढ़ता जाता है, तथापि शरीर के सारे अंग समान रफ्तार से नहीं बढ़ते हैं | फलतः बाल्यावस्था के लाक्षणिक विषमानुपात बने रहते हैं। यह बात नाक, पाँवों और हाथों में विशेष रूप से दिखाई देती है। लैंगिक परिपक्वता के बाद सिर की परिधि में केवल पाँच प्रतिशत की वृद्धि ही शेष रहती है। चेहरे की आनुपातिक वृद्धियों के कारण शुरू-शुरू में माथा ऊँचा और चौड़ा हो जाता है और नाक लंबी एवं चौड़ी; किन्तु धीरे- धीरे परिपक्व होने पर लड़के का चेहरा कुछ ऊँचा-नीचा और नोकदार हो जाता है और लड़की का अण्डे की तरह गोल | यौवनारम्भ के ठीक पहले टाँगे धड़ की अपेक्षा बहुत ही लंबी होती है और लगभग 45 वर्ष की आयु तक वैसी ही रहती हैं | बाँहों की वृद्धि का क्रम भी बहुत कुछ यही होता है। धड़ के वृद्धि-स्फुरण से पहले बाँहों की वृद्धि हो जाती है, जिससे वे बहुत लंबी लगती हैं और कालान्तर में किशोर का शरीर वृद्धि करके युवाओं की भाँति हो जाता है। युवाओं एवं युवतियों के शरीर की बनावट में कुछ अन्तर होता है |

4. अन्य शारीरिक परिवर्तन :

  • यौवनारम्भ के समय जो वृद्धि स्फुरण शुरू हुआ था और पूर्व किशोरावस्था में जो कि घटती हुई दर से चल रहा था, वह उत्तर किशोरावस्था में धीरे-धीरे रुक जाता है | अत: उत्तर किशोरावस्था में जो भी भार वृद्धि होती है वह आम-तौर पर उन भागों में वसा बढ़ जाने से होती है जिनमें पहले वसा नहीं थी या कम थी | फलतः नवकिशोर के दुबलेपन की जगह धीरे-धीरे उत्तर किशोरावस्था में शरीर भरा-भरा सा दिखाई देता है | अस्थि-पंजर की वृद्धि औसतन 18 वर्ष की आयु में रुक जाती है | अस्थियों के परिपक्व आकार प्राप्त कर लेने के बाद भी अन्य प्रकार के ऊतक विकास करते रहते हैं उदाहरणार्थ, अक्ल के दाँत (Wisdom teeth) बीस वर्ष के बाद निकलने प्रारम्भ होते हैं, उससे पहले नहीं | यौवनारम्भ में तेलोत्पादक ग्रन्थियों की अतिरिक्त सक्रियता से त्वचा में अतिरिक्त चिकनाहट आ जाती है जिससे कील-मुँहासों की समस्या हो जाती है। यह समस्या उत्तर किशोरावस्था में सामान्य हो जाती है|

5.आंतरिक अंगों का विकास –

  • किशोरों के आंतरिक अंगों में आनुपातिक वृद्धि व विकास होता है जो कि पूर्व किशोरावस्था में तीव्र गति से होता है | बालकों के पाचन तंत्र में आमाशय लंबा हो जाता है जिससे उसकी धारिता बढ़ जाती है| आंतों की लम्बाई व मोटाई बढ़ जाती है व आहार नाल की मॉस पेशियाँ शक्तिशाली व मोटी हो जाती हैं | यकृत का भार बढ़ जाता है ।परिसंचरण तंत्र में हदय के आकार व रुधिर वाहिकाओं की लम्बाई और मोटाई में वृद्धि हो जाती है | छाती की चौड़ाई व मोटाई की वृद्धि के साथ-साथ फेफड़ों के भार और आयतन में बढ़त होती है किन्तु यह वृद्धि लड़कों में लड़कियों की अपेक्षाकृत अधिक होती है। जनन ग्रंथियों की सक्रियता में वृद्धि के कारण सम्पूर्ण अंत: स्त्रावी तंत्र में एक अस्थायी असंतुलन आ जाता है | बाल्यावस्था में जो ग्रंथियाँ प्रधान थीं, उनकी प्रधानता अब कम हो जाती है व अन्य ग्रंथियों की प्रधानता (एड्िनल ग्रंथि, थायरॉइड ग्रंथि, जनन ग्रंथि आदि) बढ़ जाती है जिससे न्यूनतम उपापचय की दर भी कुछ समय के लिये बढ़ जाती है |

शारीरिक विकास की परिभाषा

  • शारीरिक विकास एक व्यक्ति के शारीरिक स्वास्थ्य और फिटनेस की प्रक्रिया है जिसमें उनके शारीरिक क्षमता, स्वास्थ्य, और शारीरिक कौशल को सुधारने का प्रयास किया जाता है। यह विकास मन, शरीर, और आत्मा के तीनों पहलुओं को समाहित करता है और व्यक्ति के जीवन में उनके शारीरिक क्षमता को बेहतर बनाने का माध्यम होता है।

शारीरिक विकास के महत्वपूर्ण पहलु निम्नलिखित हो सकते हैं:

1. शारीरिक स्वास्थ्य: यह शरीर के विभिन्न हिस्सों के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करता है, जैसे कि कार्दियोवास्क्युलर स्वास्थ्य, मांसपेशियों का स्वास्थ्य, और शरीर की पोषण की देखभाल।

2. फिटनेस: शारीरिक विकास के तहत व्यक्ति के शरीर की क्षमता और ताकत को बढ़ावा देने के लिए व्यायाम और फिटनेस आवश्यक होते हैं।

3. आहार: सही पोषण और उपयुक्त आहार शारीरिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है। सही खानपान से आपके शरीर को उपयुक्त पोषण मिलता है और आपके स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने में मदद करता है।

4. व्यक्तिगत ह्याजीन: स्वच्छता और व्यक्तिगत ह्याजीन के उपायों का पालन शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में महत्वपूर्ण है।

5. मानसिक स्वास्थ्य: शारीरिक विकास न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को भी मदद कर सकता है। व्यायाम और ध्यान आदि मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने में मदद कर सकते हैं।

शारीरिक विकास के लिए नियमित व्यायाम, सही आहार, और स्वच्छता का पालन करना महत्वपूर्ण होता है। यह न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को बल्कि आपके सामाजिक और पेशेवर जीवन को भी सुधार सकता है।

शारीरिक शिक्षा के Notes पढ़ने के लिए — यहाँ क्लिक करें !

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