वर्धन राजवंश ( Vardhan Dynasty )
- वर्धन राजवंश का आदि पुरुष पुष्यभूति था जो शैव धर्मावलम्बी था। पुष्यभूति ने एक नवीन राज्य थानेश्वर की स्थापना की। प्रभाकर वर्धन इस वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक था।
- वर्धन वंश की नींव छठी शती के प्रारम्भ में पुष्यभूतिवर्धन ने थानेश्वर में की थी। इन्होंने गुप्तों के बाद उत्तर भारत में सबसे विशाल राजवंश की स्थापना की। इस वंश का पाँचवा और शक्तिशाली राजा प्रभाकरनवर्धन हुआ था। उसकी उपाधि ‘परम भट्टारक महाराजाधिराज’ थी।
- बाणभट्ट द्वारा रचित ‘हर्षचरित’ से पता चलता है कि इस शासक ने सिंध, गुजरात और मालवा पर अधिकार कर लिया था। राजा प्रभाकरवर्धन के दो पुत्र राज्यवर्धन, हर्षवर्धन और एक पुत्री राज्यश्री थी। राज्यश्री का विवाह कन्नौज के मौखरी वंश के शासक गृहवर्मन से हुआ था।
- हेनसांग तथा आर्य मंजुश्रीमूलकल्प के अनुसार वर्धन वंश (पुष्यभूति वंश) वैश्य जाति का था। पुष्यभूति वंश में तीन प्रसिद्ध शासक हुए प्रभाकर वर्धन और उसके दो पुत्र राज्यवर्धन और हर्षवर्धन।
- हर्षचरित में प्रभाकर वर्धन को हूणहरिणकेसरी कहा है अथार्थ प्रभाकर वर्धन हूण रूपी हिरण के लिए सिंह के समान थे। सर्वप्रथम प्रभाकर वर्धन नहीं इस वंश में हूणों को परास्त किया।
हर्षवर्धन (606 – 647 ई.):
- वर्धन वंश का प्रमुख शासक राज्यश्री हर्ष की बहन थी। हर्षवर्धन का जन्म 590 ई. में हुआ।
- हर्षवर्धन और चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय के मध्य होने वाले युद्ध के सम्बन्ध में जानकारी ह्वेनसांग के विवरण तथा 634 ई. के एहोल अभिलेख (रविकीर्ति द्वारा रचित) से प्राप्त होती है।
- बाणभट्ट हर्ष का दरबारी कवि व मातंग दिवाकर व मयूर नामक दो अन्य प्रमुख कवि उसके दरबार में थे।
- हर्षवर्धन स्वयं एक उच्चकोटि का विद्वान था। उसने रत्नावली, प्रियदर्शिका, नागानन्द आदि ग्रन्थों की रचना की।
- नालन्दा हर्ष के काल में शिक्षा का प्रमुख केन्द्र था।
- हर्षवर्धन प्रारम्भ में एक शैव था लेकिन बाद में एक बौद्ध भिक्षु दिवाकर मित्र के सम्पर्क में आने से उसका झुकाव बौद्ध धर्म की ओर हो गया और उसने बौद्ध धर्म के हीनयान सम्प्रदाय को अंगीकार कर लिया।
ह्वेनसांग :
- ह्वेनसांग एक चीनी यात्री था। उसका जन्म 605 ई. में चीन के होनान-फू प्रदेश में हुआ था। वह 630 ई.-645 तक में भारत रहा। ह्वेनसांग ने अपनी भारत यात्रा का विस्तृत विवरण पुस्तक ‘सी-यू-की‘ में लिखा। ‘व्ही-ली’ ह्वेनसांग की जीवनी है।
- ताम्रलिप्ति इस काल का मुख्य बन्दरगाह था।