अम्ल वर्षा Acid Rain
- मानवजीनत (Anthropogenic) स्रोतों से नि:सृत सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) वायुमण्डल में पहुँचकर जल से मिलकर सल्फेट तथा सल्फ्यूरिक एसिड (Sulphuric Acid, H2SO4) का निर्माण करती है। जब यह जल, वर्षा के रूप में नीचे गिरता हुआ धरातलीय सतह पर पहुँचता है, तो उसे अम्ल वर्षा(Acid Rain) कहते हैं।
- अम्ल वर्षा शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग आंगस स्मिथ ने 1858 ई. में किया था। अम्ल वर्षा सल्फर डाइऑक्साइड एवं नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जित (Emission) करने वाले औद्योगिक एवं परिवहन स्रोतों के क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं होती है वरन् वह स्रोत क्षेत्रों से दूर अत्यधिक विस्तृत क्षेत्रों को भी प्रभावित करती है, क्योंकि अम्ल वर्षा के उत्तरदायी कारक प्रदूषक गैसीय रूप में होते हैं, जिन्हें हवा (Air) तथा बादल (Cloud) दूर तक फैला देते हैं।
- उदाहरण के लिए; जर्मनी तथा यूनाइटेड किंगडम में स्थित मिलों से नि:सृत सल्फर डाइऑक्साइड तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड के कारण नॉर्वे तथा स्वीडन में विस्तृत अम्ल वर्षा होती है।
अम्ल वर्षा के कारण अम्ल वर्षा के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।
- अम्ल वर्षा के लिए प्राकृतिक (Natural) तथा मानवजनित दोनों कारक जिम्मेदार हैं, जिसमें जीवाश्म ईंधनों के जलने से उत्सर्जित सल्फर डाइ-ऑक्साइड (SO,) तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड इसके लिए प्रमुख रूप से उत्तरदायी हैं।
- अम्ल वर्षा के लिए उत्तरदायी प्राकृतिक कारकों के अन्तर्गत ज्वालामुखी (Volcano) का फटना, प्राकृतिक वनस्पतियों का सड़ना-गलना तथा जैविक (Biotic) अपघटन से उत्सर्जित सल्फर डाइऑक्साइड एवं नाइट्रोजन ऑक्साइड शामिल हैं। इस प्रकार प्राकृतिक स्रोतों से उत्सर्जित ये रसायन जल तथा ऑक्सीजन से मिलकर वायु के सहारे पृथ्वी के एक बड़े क्षेत्र पर फैल जाते हैं।
- मानवजनित कारकों के अन्तर्गत जीवाश्म ईंधनों के दहन से उत्सर्जित सल्फर डाइ-ऑक्साइड तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड अम्ल वर्षा के लिए उत्तरदायी हैं। साधारणतया दो-तिहाई सल्फर डाइऑक्साइड तथा एक-चौथाई नाइट्रोजन ऑक्साइड का उत्सर्जन केवल कोयला जैसे जीवाश्म ईंधनों के दहन से होता है। ये गैसें वायुमण्डल में मौजूद जल, ऑक्सीजन तथा अन्य अम्लीय यौगिकों; जैसे—सल्फ्यूरिक अम्ल, अमोनियम नाइट्रेट तथा नाइट्रिक अम्ल के साथ अभिक्रिया करती हैं। पुन: ये अम्लीय यौगिक वायु के सहारे पृथ्वी पर अम्ल वर्षा तथा वर्षण के अन्य रूपों में गिरते हैं।
अम्ल वर्षा के प्रभाव
अम्ल वर्षा के प्रभाव निम्नलिखित है।
- वनस्पति अम्लीय वर्षा पृथ्वी के उन पोषक तत्त्वों को घोलकर बहा ले जाती है, जिनकी पौधों को जरूरत होती है। यह प्रकृति में मौजूद एल्युमीनियम (Aluminium) और पारे (Mercury) जैसे विषैले पदार्थों को भी घोल लेती है, जो मुक्त होकर जल को प्रदूषित और पौधों को विषाक्त करते हैं।
- वन्य जीवन अम्लीय वर्षा वन्य जीवन पर भी दूरगामी प्रभाव डालती है। वन्य प्रजाति पर प्रतिकूल प्रभाव पूरी आहार श्रृंखला (Food Chain) को भंग करता है और अन्ततः पूरे पारितन्त्र (Ecosystem) को खतरे में डालता है। विभिन्न जलीय प्रजातियाँ अम्लीयता के अलग-अलग स्तरों को सह सकती हैं।
- इमारतों अम्लीय वर्षा और सूखे अम्लीय अवसाद में इमारतों, वाहनों तथा पत्थर और धातु की दूसरी वस्तुओं की हानि होती है। अम्ल वस्तुओं को खुरचकर व्यापक हानि पहुंचाता है तथा ऐतिहासिक स्मारकों को नष्ट करता है। उदाहरण के लिए; यूनान में पार्थेनान और भारत में ताजमहल अम्लीय वर्षा से प्रभावित हुए हैं।
- मानव स्वास्थ्य अम्लीय वर्षा से प्रदूषित जल मनुष्यों को सीधे हानि नहीं पहुँचाता। मिट्टियों में अम्लता की अधिकता सान्द्रण फसलों के लिए हानिकारक होती है। ऐसे जल से पकड़ी गई मछलियाँ मानव उपभोग के लिए हानिकारक हो सकती हैं। वायु के दूसरे रसायनों से मिलकर अम्ल नगरों में धूम्रकुहरा (Smog) पैदा करता है, जिससे साँस की समस्याएँ खड़ी होती हैं।
अम्ल वर्षा को नियन्त्रण करने के उपाय
अम्ल वर्षा को नियन्त्रण करने के उपाय निम्न हैं।
- वायुमण्डल में सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड के उत्सर्जन में कटौती करना।
- बिजलीघरों, वाहनों और उद्योगों में कम जीवाश्म ईंधनों को अपनाना।
- पर्यावरण सम्बन्धी नियमों का पालन करना।
- कोई बड़ा उद्योग लगाने से पहले उससे होने वाले प्रभाव का मूल्यांकन करना।
- आम लोगों को पर्यावरण के विषय में सचेत करना।
इने भी जरूर पढ़े –
सभी राज्यों का परिचय हिंदी में।
राजस्थान सामान्य ज्ञान ( Rajasthan Gk )