राजस्थान की प्रमुख बाल विकास योजनाएँ
राजस्थान की प्रमुख बाल विकास योजनाएँ।
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राजस्थान की प्रमुख नगरीय विकास योजनाएँ |
1. समेकित बाल विकास कार्यक्रम (Intergrated Child Development Scheme) (ICDS)
- केन्द्र प्रवर्तित यह योजना राजस्थान में 2 अक्टूबर, 1975 को बाँसवाड़ा जिले की गढ़ी पंचायत समिति से प्रारम्भ की गई।
- उद्देश्य-0 से 6 वर्ष के बच्चों तथा गर्भवती महिलाओं को जीवन की मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध कराने के साथ ही उनके पोषण व स्वास्थ्य स्तर में सुधार करना।
- योजनान्तर्गत निम्न गतिविधियों संचालित की जा रही हैंआँगनबाड़ी केन्द्रों की स्थापना, सहयोगिनी का नियोजन करके 3 से 6 वर्ष के बच्चों को गर्म पूरक पोषाहार का वितरण किया जाना।
- ‘सुराज’ योजना के अन्तर्गत ‘जननी कलेवा योजना के माध्यम से गर्भवती तथा धात्री माताओं को स्थानीय निकायों के सहयोग से शहरी क्षेत्रों में गरम-भोजन का वितरण किया जा रहा है।
- जननी कलेवा योजना-– यह योजना 15 अगस्त, 2006 को प्रारम्भ की गई। योजना राज्य के 10 शहरों भरतपुर, अजमेर, उदयपुर, बीकानेर, गंगानगर, भीलवाड़ा, जयपुर, जोधपुर, अलवर, कोटा से प्रारम्भ की गई। योजना में ‘पूरक पोषाहार’ के अन्तर्गत दलिया, हरी सब्जी, खिचड़ी तथा दाल-रोटी प्रदान की गई।
2. समेकित बाल विकास कार्यक्रम-III
- ‘विश्व बैंक’ की वित्तीय सहायता से यह योजना 5 वर्ष के लिए 1999 में प्रारम्भ की गई। वर्तमान में यह 31 मार्च, 2006 को समाप्त कर दी गई।
3. बाल श्रम उन्मूलन योजना-
- 15 अगस्त, 1996 के अन्तर्गत बने प्रावधानों को पूर्ण करने के लिए लागू की गई जिसमें 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को खतरनाक योजना कार्यों में लगाना गैर कानूनी बताया गया।
- उद्देश्य-– खतरनाक उद्योगों में लगे बाल श्रमिकों को वहाँ से हटाकर स्कूल से जोड़ना तथा वहीं रोजगार सम्बन्धी प्रशिक्षण देना।
- प्रथम चरण में जयपुर जिले में जैम कटिंग एवं कालीन उद्योग में लगे बाल श्रमिकों को शिक्षित एवं पुनर्वासित करने हेतु ‘राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना’ स्वीकृत की गई। तत्पश्चात् उदयपुर, टोंक, जोधपुर, अलवर, अजमेर जिलों में परियोजनाएँ स्वीकृत की गईं।
- द्वितीय चरण में श्रम मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा भीलवाड़ा, श्रीगंगानगर तथा बाड़मेर जिलों में बाल श्रमिक विद्यालय स्वीकृत किये गये।
4. उदीशा परियोजना
- (प्रशिक्षण के क्षेत्र में नव प्रभात) ‘केन्द्र सरकार द्वारा सितम्बर 1998 को प्रारम्भ की गई इस योजना में समेकित बाल विकास कार्यक्रम’ कार्मिकों के प्रशिक्षण एवं सामुदायिक सहभागिता को बढ़ावा देने का कार्य किया जाता है।
5. आवासीय विद्यालय
- सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग द्वारा 1997-98 में प्रारम्भ इस योजना में प्रारम्भ में 2 आवासीय विद्यालय, वजीरपुर (टोंक) में बालिका के लिए तथा ‘अटरू’ (बारों) में बालकों के लिए संचालित किये जा रहे हैं। इन विद्यालयों में अध्ययनरत विद्यार्थियों का समस्त खर्च राज्य सरकार वहन करती है।
- 2004-05 से आवासीय विद्यालयों का संचालन राजस्थान रेजीडेन्शीयल एज्युकेशनल, इन्स्टीट्यूशन्स सोसायटी’ (Rajasthan Residencial Educational Institutions Society) द्वारा किया जा रहा है। अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के वंचित बालक-बालिकाओं के लिए राज्य में 10 आवासीय विद्यालय जर्मनी की सहायता से संचालित हैं।
- खेड़ा-आसपुर (डूंगरपुर), केनपुरा (पाली), मंडौर (जोधपुर), बगड़ी (दौसा) में बालकों के लिए तथा खोड़न (बाँसवाड़ा), पावटा (नागौर), छान (सवाईमाधोपुर), हिंगी (सांगोदकोटा), आटूण (भीलवाड़ा) एवं भैसवाड़ा (जालौर) में बालिकाओं के लिए आवासीय विद्यालय संचालित हैं।
6. निष्क्रमणीय पशुपालकों के बालकों के लिए आवासीय विद्यालय-
- आवासीय स्कूल ग्राम हरियाली (जालौर) में संचालित है।
7. भिक्षावृत्ति तथा अवांछित कार्यों में लिप्त
- परिवार के बच्चों के लिए आवासीय विद्यालय मण्डाना (कोटा) में स्थापित किया जा रहा है।
8. अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं के सहयोग से संचालित कार्यक्रम
- विश्व खाद्य कार्यक्रम (World Food Programe)-– संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) द्वारा प्रवर्तित कार्यक्रम राज्य के तीन जिलों में डूंगरपुर, बाँसवाड़ा तथा राजसमन्द में संचालित यह कार्यक्रम 2003-04 में प्रारम्भ किया गया। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत बच्चों में पोषण की कमी को दूर करने के लिए निःशुल्क पूरक पोषाहार ‘इण्डिया मिक्स’ नाम से उपलब्ध कराया जाता है ताकि बच्चों में कुपोषण जनित बीमारियाँ न हों।
- विटामिन ए-कार्यक्रम यह योजना-– ‘यूनिसेफ’ (UNICEF) के सहयोग से 2001-02 में बच्चों में (0 से 5 वर्ष तक) विटामिन ‘ए’ की कमी से होने वाले रोग अंधापन (Xeropthalmia), रतौंधी (Night Blindness), खसरा तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी को दूर करने के उद्देश्य से प्रारम्भ की गई। इस योजनान्तर्गत पोषण एवं स्वास्थ्य सम्बन्धी सलाह के साथ 1 से 5 वर्ष तक के बच्चों को ‘आंगनबाड़ी केन्द्रों पर प्रत्येक 6 माह के अन्तराल से विटामिन-ए की खुराक पिलाई जाती है।
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