राजस्थान के लोक देवता

Rajasthan Ke Lok Devta ( राजस्थान के लोक देवता ) 

rajasthan ke lok devta notes in hindi

मारवाड़ अंचल में पाँचों लोकदेवताओं – पाबूजी, हड़बूजी, रामदेवजी, गोगाजी एंव मांगलिया मेहा जी को पंच पीर माना गया है।

पाबूजी राठौड़ :- 

  • जन्म 13वीं शताब्दी में फलौदी (जोधपुर) के निकट कोलूमंड में।
  • जीन्दराव खींची से देवल चारणी की गायें छुड़ाते हुए वीर गति को प्राप्त। 
  • गौरक्षक, प्लेग रक्षक व ऊँटों के देवता के रूप में विशेष मान्यता। 
  • लक्ष्मण के अवतार। बोध चिह्न ‘भाला’। ‘केसर कालमी’ घोड़ी व ‘बाँयीं ओर झुकी पाग’ के लिए प्रसिद्ध। 
  • कोलूमंड (जोधपुर) में प्रमुख मंदिर जहाँ प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को मेला भरता है। 
  • मारवाड़ में सर्वप्रथम ऊँट (साण्डे) लाने का श्रेय पाबूजी को ही है। अतः ऊँटों की पालक राइका (रेबारी )जाति इन्हें अपना आराध्य देव मानती है। 
  • पाबूजी से संबंधित गाथा गीत ‘पाबूजी के पवाड़े माठ वाद्य के साथ नायक एवं रेबारी जाति द्वारा गाये जाते हैं।
  • ‘पाबूजी की फड़’ नायक जाति के भोपों द्वारा ‘रावणहत्था’ वाद्य के साथ बाँची जाती है। 

गोगाजी चौहान :- 

  • जन्म : ददरेवा (चुरू) 11वीं सदी में। साँपों के देवता। इन्हें जाहर पीर भी कहते हैं। 
  • गोगाजी ने गौ-रक्षा एवं मुस्लिम आक्रांताओं (महमूद गजनवी) से देश की रक्षार्थ अपने प्राण न्यौछावर किए। 
  • गोगाजी की सवारी ‘नीली घोड़ी’ है। 
  • किसान वर्षा के बाद हल जोतने से पहले गोगाजी के नाम की राखी ‘गोगा राखडी’ हल और बाली लोके बाँधता है। 
  • गोगाजी के जन्म स्थल ददरेवा को शीर्ष मेड़ी तथा समाधि स्थल ‘गोगा मेडी’ (नोहर-हनमानगढ को ‘धरमेडी’ भी कहते हैं। गोगामेड़ी में प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्णा नवमी (गोगा नवमी) को विशाल मेला भरता है !
  • साँचोर (जालौर) में भी ‘गोगाजी की ओल्डी’ नामक स्थान पर गोगाजी का मंदिर है।
  • गोगाजी केथान खेजड़ी वृक्ष’ केनीचे होते हैं जहाँ मूर्तिस्वरूप पत्थर पर सर्प की आकृति अंकित होती है !

रामदेवजी :- 

  • ‘रामसा पीर’, ‘रूणीचा रा धणी’ व ‘बाबा रामदेव’ नाम से प्रसिद्ध लोकदेवता। 
  • जन्म : भादवा सुदी 2 संवत् 1462 (1405 ई.) को उण्डकश्मीर, शिव तहसील (बाडमेर) में। जन्मतिथि “बाबे री बीज’ नाम से पुकारी जाती है। 
  • समाधि : रूणेचा में भादवा सुदी एकादशी संवत् 1515 (सन् 1458) को। 
  • कामड़िया पंथ के प्रवर्तक। कृष्ण के अवतार। इनके गुरु बालीनाथ थे।
  • डाली बाई : रामदेवजी की अनन्य शिष्या।
  • रामदेवजी के पगल्ये (चरण चिह्न)बनाकर गाँव-गाँव पूजे जाते हैं। इनके मेघवाल भक्त जनों को ‘रिखिया’ कहते हैं। रामदेवजी के भक्त इन्हें कपड़े का बना घोड़ा चढ़ाते हैं।
  • रामदेवजी के मंदिरो को देवरा’ कहा जाता है, जिन पर श्वेत या 5 रंगों की ध्वजा, ‘नेजा’ फहराई जाती है।
  • रामदेवजी ही एक मात्र ऐसे देवता हैं, जो एक कवि भी थे। इनकी रचित ‘चौबीस बाणियाँ’ प्रसिद्ध हैं। 
  • रामदेवरा (रूणीचा, जैसलमेर) में रामदेवजी का विशाल मंदिर है जहाँ भाद्रपद शुक्ला द्वितीया से एकादशी तक विशाल मेला भरता है जिसकी मुख्य विशेषता साम्प्रदायिक सद्भाव व तेरहताली नृत्य है। 
  • जम्मा : रामदेवजी के नाम पर भाद्रपद द्वितीया व एकादशी को किया जाने वाला रात्रि जागरण। 
  • अन्य मंदिर : जोधपुर में मसूरिया पहाड़ी पर, बिराँटिया एवं सुरताखेड़ा (चित्तौडगढ)।

तेजाजी :- 

  • खड़नाल (नागौर) के नागवंशीय जाट। अजमेर जिले के प्रमुख लोक देवता। 
  • लाछा गुजरी की गायें मेरों से छुड़ाने हेतु प्राणोत्सर्ग। 
  • सर्प व कुत्ते काटे प्राणी का इलाज। इलाज करने वाले भोपे को घोड़ला कहते हैं। 
  • किसान तेजाजी के गीत के साथ ही बुवाई प्रारंभ करते हैं।
  • मुख्य थान- खडनाल (नागौर), अजमेर के सुरसुरा, ब्यावर, सेंदरिया व भावता। 
  • परबतसर (नागौर) व अन्य थानों पर भाद्रपद शक्ला दशमी (तेजा दशमी) को मेला (पशु मला भा) भरता है।
  • तेजाजी को निर्वाण स्थली सुरसुरा (अजमेर) में तेजाजी की जागीर्ण निकाली जाती है। 

देवनारायणजी :- 

  • सवाई भोज के पुत्र देवनारायणजी काजन्म बगडावत परिवार में हुआ। इनका जन्म नाम उदयसिंह था।
  • मूल देवरा : गोठां दड़ावत (आसींद भीलवाड़ा)। समाधि : देवमाली (ब्यावर)। 
  • अपने पराक्रम और सिद्धियों का प्रयोग अन्याय का प्रतिकार करने और जनकल्याण में किया। देवमाली (ब्यावर) में इन्होंने देह त्यागी। 
  • गुर्जर जाति के लोग देवनारायण जी को विष्णु का अवतार मानते हैं। इनकी फड़ गूजर भोपे बाँचते हैं। 
  • अन्य स्थल : देवधाम जोधपुरिया (निवाई, टोंक) व देव डूंगरी पहाड़ी, चित्तौड़।
  • देवनारायणजी का मेला भाद्रपद शुक्ला छठ व सप्तमी को लगता है। 

हड़बूजी :- 

  • भंडोल (नागौर) के राजा मेहाजी सांखला के पुत्र । गुरु : बालीनाथ । रामदेवजी के समाज सुधार कार्य के लिए आजीवन कार्य किया।
  • मेहाजी सभी मांगलियों के इष्ट देव के रूप में पूजे जाते हैं।
  • बेंगटी (फलौदी) में हड़बू जी का मुख्य पूजा स्थल है एवं इनके पुजारी साँखला राजपूत होते हैं। 

मेहाजी :- 

  • जैसलमेर के राव राणंगदेव भाटी से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। 

मांगलिया :-

  • बापणी (जोधपुर) में इनका मंदिर है। भाद्रपद कृष्ण जन्माष्टमी को मांगलिया राजपूत मेहाजी की अष्टमी मनाते हैं। 

कल्लाजी :-

  • जन्म : मारवाड़ के सामियाना गाँव में। प्रसिद्ध योगी भैरवनाथ इनके गुरु थे !
  • चित्तौड़ के तीसरे शाके में अकबर के विरुद्ध लड़ते हुए ये वीरगति को प्राप्त हुए। युद्धभूमि में चतुर्भुज के रूप में दिखाई गई वारता के कारण इनको ख्याति चार हाथ वाले लोक देवता के रूप में हुईं | 
  • चित्तौडगढ दुर्ग में भैरव पोल पर कल्लाजी राठौड़ की एक छतरी बनी
  • रनेला इस वार का सिद्ध पाठ हैं। भूत-पिशाच ग्रस्त लोग व रोगी पशुओ का इलाज | 

मल्लिनाथजी :- 

  • जन्म : 1358 ई. में मारवाड़ में। ये भविष्यदृष्टा एवं चमत्कारी पुरुष थे।
  • तिलवाड़ा (बाड़मेर) में प्रसिद्ध मंदिर जहाँ हर वर्ष चैत्र कृष्णा एकादशी से 15 दिन का मेला (पशु मेला भी) भरता है।

तल्लिनाथजी :- 

  • जालौर के प्रसिद्ध प्रकृति प्रेमी लोकदेवता।
  • जालौर के पाँचोटा गाँव के निकट पंचमुखी पहाड़ी पर इनकी मूर्ति स्थापित है। 

देव बाबा :-

  • पशु चिकित्सा का अच्छा ज्ञान ।गूजरों व ग्वालों के पालनहार व कष्ट निवारक।
  • नगला जहाज (भरतपुर) में मंदिर जहाँ हर वर्ष भाद्रपद शुक्ला पंचमी और चैत्र शुक्ला पंचमी को (वर्ष में दो बार) मेला भरता है। 

मामा देव :- 

  • विशिष्ट लोक देवता जिनकी मिट्टी-पत्थर की मूर्तियाँ नहीं होती बल्कि गाँव के बाहर प्रतिष्ठित लकड़ी का एक विशिष्ट व कलात्मक तोरण होता है।

डूंगजी-जवाहरजी :- 

  • शेखावाटी क्षेत्र के लोक देवता। ये डाकू थे जो धनी लोगों व अंग्रेजी खजाने को लूटकर उनका धन गरीबों एवं जरूरतमंदों में बाँट दिया करते थे। अतः इन्हें लोकदेवता के रूप में पूजा जाने लगा। इनके साहस व वीरता की प्रशंसा में जयपुर राज्य की जनता में गीत गाये जाते हैं।

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One response to “राजस्थान के लोक देवता”

  1. pawanborana says:

    राजस्थान में लोकदेवता को काफी पूजा जाता है और इनसे जुड़े कई सवाल प्रतियोगी परीक्षा में आते है धन्यवाद आपने इसके बारे जानकारी दी

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