मृदा एवं मृदा के प्रकार , मृदा-संरक्षण

मृदा एवं मृदा के प्रकार , मृदा-संरक्षण

मृदा एवं मृदा के प्रकार , मृदा-संरक्षण in Hindi

मृदा –

  • पवन (हवा), जल और जलवायु की क्रियाओं से चट्टानें एवं खनिज के टूटने-फूटने तथा कार्बनिक पदार्थों के सड़नेगलने से बने विभिन्न पदार्थों के मिश्रण से निर्मित पृथ्वी का सबसे ऊपरी भाग मृदा (मिट्टी) कहलाता है।

मृदा के प्रकार –

  • बलुई मृदा : इस प्रकार की मृदा के कण बड़े हल्के, हवादार व शुष्क होते हैं।
  • मृण्मय मृदा : इस प्रकार की मृदा के सूक्ष्म कण आपस में जुड़े हुए होते हैं। कणों के मध्य वायु कम और जल अधिक अवशोषित होता है।
  • दुमटी मृदा : इस प्रकार की मृदा में छोटे व बड़े कणों की मात्रा समान होती है।

मृदा-संरक्षण –

  • प्रकृति में तेज हवाएँ एवं बहते जल के द्वारा भूमि की ऊपरी उपजाऊ परत (ढीली मृदा) को बहाकर ले जाना मृदा अपरदन कहलाता है। मृदा अपरदन को रोकने के लिए मृदा का संरक्षण करना अति आवश्यक है। मृदा संरक्षण हेतु निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिए ।
    1. उपजाऊ मिट्टी को बहने से रोकने के लिए अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना चाहिए।
    2. प्राकृतिक वनों का संरक्षण करना चाहिए।
    3. फसल को काटते समय जड़ों को मिट्टी में रहने देना चाहिए।
    4. खेतों के चारों ओर बायो फेंसिग (जैविक बाड्) करनी चाहिए।

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