साइनोवैक्टीरिया : नील-हरित शैवाल

साइनोवैक्टीरिया : नील-हरित शैवाल (Blue green algae notes in hindi)

Blue green algae notes in hindi

  • नील-हरित शैवाल भी एक प्रकार का जीवाणु होता है। इन्हें साइनोबैक्टीरिया के नाम से भी जाना जाता है। साइनोवैक्टीरिया को पृथ्वी का सफलतम जीवधारियों का समूह माना जाता है। ये विश्व के उन सभी स्थलों पर पाये जाते हैं, जहाँ ऑक्सीजन उत्पादक प्रकाश संश्लेषी जीवधारी निवास कर सकते हैं जैसे—सामान्य जल, समुद्री जल, नम चट्टान, मिट्टी आदि । ये बहुकोशिकीय (Multicellular) या एककोशिकीय (Unicellular) जीवाणु होते हैं। संरचना के आधार पर इनकी कोशिकाओं की मूलभूत रचना शैवालों की अपेक्षा जीवाणुओं से अधिक समानता रखती है। इनमें क्लोरोफिल (Chlorophyll) नामक प्रकाश संश्लेषी वर्णक पाया जाता है जिसके कारण ये प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा अपने भोजन का निर्माण स्वयं करते हैं। इस क्रिया के रूप में ये जीवाणु हाइड्रोजन के स्रोत के रूप में जल का प्रयोग करते हैं। इस प्रकार के जीवाणुओं में निम्नलिखित प्रमुख लक्षण पाये जाते हैं-
  • 1. ये जलीय (Aquatic), तंतुवत (Filamentous), स्वपोषी (Autotrophs) एवं क्लोरोफिलयुक्त (Chlorophyllous) होते हैं।
  • 2. ये प्रकाश संश्लेषण में हाइड्रोजन के स्रोत के रूप में जल का प्रयोग करते हैं।
  • 3. इनकी कोशिकाभित्ति में सेल्यूलोज पाया जाता है।
  • 4. इनमें लैंगिक जनन नहीं होता है।
  • 5. इनमें अलैंगिक जनन एकानीट (Akanit) द्वारा होता है।
  • 6. इनमें विकसित कोशिकांगों जैसे—अंतःप्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic reticulum), माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria) आदि का अभाव होता है।
  • 7. इनमें आनुवंशिक इकाई के रूप में DNA होता है।
  • 8. कुछ साइनोबैक्टीरिया मिट्टी में रहकर नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nitrogen fixation) का कार्य करते हैं। जैसे—नॉस्टॉक (Nostoc)
  • 9. ये गंधकीय वातावरण में भी जीवित रहने की क्षमता रखते हैं।
  • 10. इन्हें अत्यधिक आत्मनिर्भर स्वपोषी माना जाता है।
  • 11. इनमें शैवालों की भाँति लिनोलिक अम्ल (Linolic acid) तथा गैलेक्टोज (Galactose) पाया जाता है।
  • 12. इनमें कोशिका विभाजन (Cell division) असूत्री (Amitosis) प्रकार का होता है।

नोट : लाल सागर का लाल रंग ट्राइकोडेस्थियम एरीथ्रियम नामक साइनोबैक्टीरिया के कारण ही दिखलायी पड़ता है, क्योंकि ये इस सागर में प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं।

महत्व (Importance) : ऐसा माना जाता है कि साइनो बैक्टीरिया सर्वप्रथम ऑक्सीजनक प्रकाशसंश्लेषी जीवधारी थे, यह भी समझा जाता है कि इनकी क्रियाओं के फलस्वरूप पृथ्वी वायवीय (Aerobic) हो पायी। अतः वायुमण्डल के निर्माण का श्रेय इन्हीं को दिया जाता है। नाइट्रोजन स्थिरीकरण द्वारा कुछ साइनोवैक्टीरिया मृदा की उर्वरता में वृद्धि के लिए सहायक होते हैं। अनेक सइनोबैक्टीरिया जैसे-ऑसिलेटोरिया, स्पाइरुलिना, एनाबीना इत्यादि मछलियों व अन्य जलीय जन्तुओं के लिए भोजन का कार्य करते हैं, जिससे जीवों को प्रोटीन की आपूर्ति होती है। साइनोबैक्टीरिया कवक से लेकर साइकस तक अनेक जीवधारियों के साथ सहजीवी (Symbiotic) सम्बन्ध रखते हैं। राइजोबियम नामक साइनोबैक्टीरिया नाइट्रोजन स्थिरीकरण करते हैं। दलहनी पौधों के साथ राइजोबियम का सहजीवी सम्बन्ध होता है।

सहजीवी सम्बन्ध :

  • दो जीवों के मध्य ऐसा सम्बन्ध जिसमें दोनों जीव एक-दूसरे से लाभान्वित होते हों, सहजीवी सम्बन्ध (Symbiotic relationship) कहलाता है। ऐसे साहचर्य में सम्मिलित जीवों को सहजीवी कहते हैं। जैसे—लाइकेन (Lichen) ।
  • लाइकेन ऐसे जीव हैं जिनमें साइनोबैक्टीरिया एवं कवक (Fungi) साथ-साथ रहते हैं। इनमें कवक जल का अवशोषण करता है तथा साथ ही साथ यह जीवाणु को सहारा (Support) प्रदान करता है जबकि साइनोबैक्टीरिया भोजन बनाने का कार्य करता है। इस प्रकार के सहजीवी सम्बन्ध को सहोपकारिता (Commonalism) कहते हैं।

Blue green algae notes in hindi FAQs-

सायनोबैक्टीरिया क्या है और इसका कार्य क्या है?

  • नील हरित शैवाल (अंग्रेज़ी:ब्लू-ग्रीन ऐल्गी, सायनोबैक्टीरिया) एक जीवाणु फायलम होता है, जो प्रकाश संश्लेषण से ऊर्जा उत्पादन करते हैं। यहां जीवाणु के नीले रंग के कारण इसका नाम सायनो (यूनानी:κυανός {काएनोस} अर्थात नीला) से पड़ा है। वर्गीकरण फिलहाल पुनरावलोकनाधीन है।

साइनोबैक्टीरिया का दूसरा नाम क्या है?

  • सायनोबैक्टीरिया को नील हरित शैवाल भी कहते है।

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