पारिस्थितिकी कारक (Ecological factors)

पारिस्थितिकी कारक (Ecological factors Notes in Hindi)

Ecological factors Notes in Hindi

  • पारिस्थितिकी कारक (Ecological factors): पर्यावरण के वे कारक जो पेड़-पौधों तथा जीव-जन्तुओं को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष ढंग से प्रभावित करते हैं, पारिस्थितिकी कारक कहलाते हैं।
  • पारिस्थितिकी कारक दो प्रकार के होते हैं-

(A) अजैविक कारक (Abiotic factors):

  • इसके अन्तर्गत वे पारिस्थितिकी कारक आते हैं जो निर्जीव होते हैं। जैसे-प्रकाश, ताप, आर्द्रता, वायु, भू-आकृतिक, मृदा आदि।
  • प्रकाश (Light): प्रकाश एक महत्वपूर्ण जलवायवीय कारक (Climatic factor) है। प्रकाश के द्वारा पौधे प्रकाश संश्लेषण विधि से अपना भोजन बनाते हैं। जन्तु समुदाय भोजन के लिए पौधों पर निर्भर होता है। पौधों में गति, बीज, अंकुरण, श्वसन, वाष्पोत्सर्जन आदि क्रियाओं में भी प्रकाश का प्रभाव पड़ता है। प्रकाश के गुण, मात्रा, तथा अवधि का प्रभाव पौधों पर पड़ता है। नीले रंग के प्रकाश में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया कम तथा लाल रंग में सबसे अधिक होती है। प्रकाश की अवधि के आधार पर पौधों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-
    (i) दीर्घ प्रकाशीय पौधे (Long day plants): जैसे-हेनबेन, गुलाब आदि।
    (ii) अल्प प्रकाशीय पौधे (short day plants): जैसे- सोयाबीन, तम्बाकू आदि।
    (iii) प्रकाश उदासीन पौधे (Day neutral plants): जैसे- सूर्यमुखी, कपास, टमाटर, मिर्च आदि।
  • ताप (Temperature): ताप का प्रभाव जीवों की रचना, क्रियाओं तथा प्रजनन पर पड़ता है। ताप के परिवर्तन के कारण पौधों की दैनिक क्रिया पर प्रभाव पड़ता है। दैनिक क्रिया के लिए औसतन 10°C से 45°C तक ताप आवश्यक होता है। ताप के कारण पौधों में होनेवाली अनुक्रियाएँ तापकालिता (Thermoperiodism) कहलाती हैं। तापमान के बढ़ने से पौधों में वाष्पोत्सर्जन की क्रिया बढ़ जाती है।
  • आर्द्रता (Humidity): वायुमंडल में जलवाष्प की उपस्थिति के कारण वायु नम रहती है। आर्द्रता का सम्बन्ध वाष्पोत्सर्जन से होता है। कम आर्द्रता रहने पर वाष्पोत्सर्जन अधिक तथा अधिक आर्द्रता रहने पर वाष्पोत्सर्जन की क्रिया कम होती है।
    वायु (wind): वायु भी एक महत्वपूर्ण अजैविक कारक है। इसका प्रभाव मुख्य रूप से भूमि अपरदन, परागण एवं बीजों के प्रकीर्णन पर पड़ता है।
  • भू-आकृतिक (Topographic): इसके अन्तर्गत किसी स्थल की ऊँचाई, भूमि का ढलान, खुलाव के प्रभावों तथा वनस्पतियों पर होने वाले बदलाव में सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।
  • मृदीय (Edaphic): सभी वनस्पतियाँ मृदा संरचना, मृदा, वायु, मृदा जल इत्यादि से प्रभावित होते हैं।

(B) जैविक कारक (Biotic factor):

  • जैविक कारक भी जीवधारियों को प्रभावित करते हैं। एक स्थान के विभिन्न जीवधारी एक-दूसरे से आपसी सम्बन्ध स्थापित करते हैं। ये सम्बन्ध कई प्रकार के होते हैं।
    जैसे-
    (i) सहजीवन (symbiosis)- इसमें दो जीवों का परस्पर लाभकारी सम्बन्ध होता है। जैसे- कवक और शैवाल मिलकर लाइकन (Lichen) बनाते हैं।
    (ii) परजीविता (Parasitism) – इसमें एक जीव दूसरे जीव पर आश्रित रहता है तथा उसे हानि पहुँचाता है। जैसे-कवक, जीवाणु, विषाणु आदि।
    (iii) सहजीविता (Cornmensalism) – इस प्रकार के सम्बन्ध में एक जीव को हानि अथवा लाभ नहीं होता है, जबकि दूसरा जीव लाभ में रहता है। जैसे-अधिपादप (Epiphytes), लियाना आदि।
    (iv) परभक्षण (Predation): इस प्रकार के सम्बन्ध में एक जीव दूसरे जीव का पूरी तरह से भक्षण कर लेता है। जैसे-जूफैगस, आर्थोवोट्रीस आदि।
    (v) मृतोपजीविता (Saprophytism): इस प्रकार के सम्बन्ध में वैसे जीव आते हैं जो सड़े-गले पदार्थों पर आश्रित होते हैं। जैसे-कवक, नीयोटिया आदि।
Ecological factors Notes in Hindi

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