कार्य की परिभाषा क्या है , मात्रक , विमा , सूत्र , इकाई 

कार्य की परिभाषा क्या है , मात्रक , विमा , सूत्र , इकाई 

kary kya hai , kary ke matrk , vima , sutr

  • जब किसी पिण्ड पर बल आरोपित किया जाता है तो उसमे विस्थापन उत्पन्न हो जाता है , तो आरोपित बल व उत्पन्न विस्थापन के गुणनफल के मान को बल द्वारा पिण्ड पर किया गया कार्य कहलाता है।
  • दैनिक जीवन में हम अनेक प्रकार के कार्य करते है जैसे बोझा, उठाना, साइकिल चलाना, चक्की पीसना, पत्थर तोड़ना इत्यादि; इन सभी कार्यों में वस्तु पर एक बल लगाया जाता है जो कि वस्तु को उसके स्थान से विस्थापित कर देता है। वैज्ञानिक दृष्टि से कार्य तब ही किया हुआ माना जाता है जब वस्तु पर बल लगाने से वस्तु में विस्थापन उत्पन्न हो गया हो।
  • यदि किसी वस्तु पर बल लगा देने पर वस्तु में विस्थापन नहीं हो तो वैज्ञानिक दृष्टि से हम कह सकते हैं कि कोई कार्य नहीं किया गया । उदाहरणार्थ अपने सिर पर भार रखकर एक ही स्थान पर खड़े रहने पर हम कोई कार्य नहीं करते, क्योंकि वस्तु में कोई विस्थापन उत्पन्न नहीं हुआ। हाँ, हमने भार पृथ्वी से उठाकर सिर पर रखने में गुरुत्व बल के विरुद्ध अवश्य कार्य किया है।
  • स्पष्ट है कि कार्य का अर्थ लाभ है प्रयास नहीं। ऐसे कार्य (परिश्रम) जो लाभदायक नहीं होते, उनको आन्तरिक कार्य (Internal Work) कहते हैं, उदाहरणतः दीवार को धकेलना, हथेली से मेज को दबाना आदि। परन्तु इन उदाहरणों में हम थकान अनुभव करते हैं। जब हम बोझा सिर पर रखकर खड़े रहते हैं तब हमारी मांस पेशियों पर तनाव पड़ता है तथा वे बार-बार सिकुड़ती व फैलती हैं; इस प्रक्रिया में मांस-पेशियाँ आन्तरिक कार्य करती है तथा शरीर की रासायनिक ऊर्जा का क्षय होता है।
  • वस्तु पर बल लगाकर जब इसे विस्थापित किया जाता है तो एक विरोधी बल भी उपस्थित होता है। यदि कोई विरोधी बल उपस्थित न हो तो वस्त को विस्थापित करने में किसी बल की आवश्यकता न हो। बाह्य बल, वास्तव में इन्हीं विरोधी बलों के विरुद्ध कार्य करता है। भार उठाते समय गुरुत्व बल के विरुद्ध, हल चलाने में मिट्टी के कणों के बीच ससंजक बल के विरुद्ध तथा मशीन चलाने में घर्षण बल के विरुद्ध कार्य किया जाता है।

कार्य का मापन (Measurement of Work)

  • किसी वस्तु को विस्थापित करने में जितना अधिक बल लगाना पड़ता है, कार्य उतना ही अधिक होता है। पुनः कोई बल आरोपित करने पर, वस्तु को जितनी अधिक दूरी तक विस्थापित किया जाता है, कार्य उतना ही अधिक करना पड़ता है। अत कार्य का मापन आरोपित बल के परिमाण तथा बल की दिशा में उत्पन्न विस्थापन के गुणनफल से किया जाता है।
  • यदि कोई बल F किसी वस्तु पर कार्य करके उसे बल की दिशा में ∆s दरी विस्थापित कर दे, तो किया गया कार्य
    ∆W = F x ∆s
    (कार्य = बल x बल की दिशा में विस्थापन)

कार्य का मात्रक व विमा (Units and Dimensions of Work)

  1.  S.I. पद्धति में कार्य का मात्रक जूल (Joule) J होता है।
    W = F. As
    = न्यूटन x मीटर
    1 जूल = 1न्यूटन x 1मीटर
    अतः यदि 1न्यूटन का बल किसी वस्तु को 1 मीटर से विस्थापित कर देता है तो किया गया कार्य 1 जूल होगा।
  2. C.G.S. पद्धति में कार्य का मात्रक अर्ग (erg) है,
    अर्ग = डाईन x सेमी. यदि 1 डाइन का बल किसी वस्तु को 1 सेमी. दूरी से विस्थापित करता है तो किया गया कार्य 1 अर्ग कहलाता है। . उपरोक्त दोनों मात्रक निरपेक्ष मात्रक कहलाते हैं।
    जूल तथा अर्ग में सम्बन्ध
    1 जूल = 1 न्यूटन x 1 मीटर
    = 105 डाइंन x 102 सेमी.
    = 107 डाइन x सेमी.
    = 107 अर्ग
  3. गुरुत्वीय मात्रक-जब एकांक गुरुत्वीय मात्रक का कोई बल किसी वस्तु को एकांक दूरी से बल की दिशा में विस्थापित कर देता है तो किया गया कार्य एकांक गुरुत्वीय मात्रक का कार्य कहलाता है।
    चूँकि बल का गुरुत्वीय मात्रक किलोग्राम-बल (kg f) होता है। अतः कार्य का गुरुत्वीय मात्रक किग्रा बल x मीटर होता है।
    1 किग्रा बल x मीटर = 9.81 न्यूटन x मीटर
    = 9.81 जूल
    इसी प्रकार 1 ग्राम बल x सेमी. = 981 डाइन x सेमी.
    = 981 अर्ग
  4. लघु व्यवहारिक मात्रक-कार्य का लघु व्यवहारिक मात्रक इलेक्ट्रॉन वोल्ट (ev) होता है।
    1eV = 1.6 x 10-19 जूल
  5. कार्य का बड़ा मात्रक-कार्य का बड़ा मात्रक किलोवॉट घण्टा (Kilowatt hour : kWh) होता है।
    1kWh = 3.6 x 106 J
    एक किलोवॉट घण्टा को 1 यूनिट कहते हैं। हमारे घरों में विद्युत विभाग द्वारा लगाये गये ‘विद्युत मीटर’ व्यय ऊर्जा को किलोवॉट घण्टा में ही दर्शाते हैं।

कार्य की विमा : [ M1 L2 T-2 ]

कार्य कितने प्रकार के होते है (types of work)

  • कार्य को तीन भागों में विभक्त किया गया है –
    1. धनात्मक कार्य (positive work)
    2. ऋणात्मक कार्य (negative work)
    3. शून्य work (zero work)

कार्य से जुड़े महत्त्वपूर्ण तथ्य –

  1. कार्य एक अदिश राशि है।
  2. किसी निकाय द्वारा कार्य तभी सम्पन्न होता है, जब बल उसमें विस्थापन उत्पन्न करता है।
  3. जब बल तथा विस्थापन एक ही दिशा में होते हैं तो किया गया कार्य अधिकतम होता है।
  4. जब बल तथा विस्थापन एक-दूसरे के लम्बवत् होते हैं तो किये गये कार्य का मान शून्य होता है।
  5. ऋणात्मक कार्य वस्तु की गति में मंदन उत्पन्न करता है।
  6. कार्य समय पर निर्भर नहीं करता है।
  7. संरक्षी बलों द्वारा किया गया कार्य पथ पर निर्भर नहीं करता है।

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