प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन (Management of natural resources in Hindi)

Management of natural resources in Hindi

  • मनुष्य अपने जीविकोपार्जन के लिए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करता है। आदि मानव अपने पर्यावरण से प्राप्त वनस्पतियों एवं पशुओं पर निर्भर है। उस समय जनसंख्या का घनत्व कम था, मनुष्य की आवश्यकताएँ सीमित थी ‘तथा प्रौद्योगिकी का स्तर नीचे था। उस समय संरक्षण की समस्या नहीं थी | कालान्तर में मनुष्य ने संसाधनों के दोहन की प्रौद्योगिकी में विकास किया । वैज्ञानिक तथा तकनीकी विकास द्वारा मनुष्य जीविकोपार्जी संसाधनों के अतिरिक्त, उत्पादन के संसाधनों का भी दोहन करने लगा | जनंसख्या की निरन्तर वृद्धि के कारण संसाधनों की मांग बढ रही है साथ ही प्रौद्योगिकी के विकास द्वारा इन्हें उपयोग करने की मनुष्य की क्षमता भी बढी है। अत: इस होड़ ने यह आशंका उत्पन्न कर दी है कि कही ये संसाधन शीघ्र समाप्त होकर और पूरी मानवता के जीवन पर ही प्रश्नचिहन न लग जाए।

1. न्याय संगत उपयोग एवं संरक्षण (Judicial use and conservation)

  • प्राकृतिक संपदाओं का योजनाबद्ध, न्यायसंगत और विवेकपूर्ण उपयोग किया जाए तो उनसे अधिक दिनों तक लाभ उठाया जा सकता है, वे भविष्य के लिए संरक्षित रह सकती है। संपदाओं या संसाधनों का योजनाबद्ध, समुचित और विवेकपूर्ण उपयोग ही उनका संरक्षण है | सरंक्षण का यह अर्थ कदापि नहीं है कि-
  • 1. प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग न कर उनकी रक्षा की जाए या 2. उनके उपयोग में कंजूसी की जाए या 3. उनकी आवश्यकता के बावजूद उन्हें भविष्य के लिए बचा कर रखा जाए। वरन् संरक्षण से हमारा तात्पर्य है कि संसाधनों का अधिकाधिक समय तक अधिकाधिक मनुष्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु विवेकपूर्ण उपयोग हो |

2. संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता (Need for conservation of resources)

  • मानव विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए करता आ रहा है। खाद्यानों और अन्य पदार्थों की पूर्ति के लिए उसने भूमि को जोता है, सिचांई और शक्ति के विकास के लिए उसने वन्य पदार्थों एवं खनिजों का शोषण और उपयोग किया है | पिछली दो शताब्दियों में जनसंख्या तथा औद्योगिक उत्पादनों की वृद्धि तीव्र गति से हुई है। विश्व की जनसंख्या आज से दो सो वर्ष पूर्व जहाँ पौने दो अरब थी वहां सवा पाँच अरब पहुँच चुकी है। हमारी भोजन, वस्त्र, आवास, परिवहन के साधन, विभिन्न प्रकार के यंत्र, औद्योगिक कच्चे माल की खपत कई गुना बढ गयी है। इस कारण हम प्राकृतिक संसाधनों का तेजी से गलत व विनाशकारी ढंग से शोषण करते जा रहे है। जिससे प्राकृतिक संतुलन बिगड़ने लगा है यदि यह संतुलन नष्ट हुआ तो मानव का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा | अतः मानव के अस्तित्व एवं प्रगति के लिए प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण व प्रबंधन आवश्यक हो चला है।

3 संसाधनों के संरक्षण के उपाय (Ways of conservation of resources)

  • प्राकृतिक संपदा हमारी पूँजी है। जिसका लाभकारी कार्यों में सुनियोजित ढंग से उपयोग होना चाहिए | इसके लिए पहले हमें किसी देश या प्रदेश के संसाधनों की जानकारी होनी चाहिए तथा हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि विभिन्न संसाधन परस्परावलम्बी तथा परस्पर प्रभावोत्पादक होते है। अतः एक का ह्यस हो या नाश हो तो उस का कुप्रभाव पूरे आर्थिक चक्र पर पड़ता है। हमें इनका उपयोग प्राथमिकता के आधार पर करना चाहिए | जो संसाधन या प्राकृतिक संपदा सीमित है उसे अंधाधुंध समाप्त करना अदूरदर्शिता है। सीमित परिभाग वाली संपदा (कोयला, पेट्रोलियम) के विकल्प की खोज करना श्रेयस्कर है। संसाधनों के संरक्षण के लिए सरकारी तथा गैर सरकारी स्तर पर पूर्ण सहयोग मिलना आवश्यक है|

4. वन संरक्षण एव प्रबंधन (Forest conservation and management)

  • वन इस पृथ्वी पर जीवन का आधार ¥ | यह वह क्षेत्र है जहां जीवन के विकास की क्रिया युगों से चलती आयी है और प्राणियों तथा पौधो की लाखों जातियों की उत्पति हुई है । वन, बरसात तथा उसमें पानी के संरक्षण हेतु अलवणीय जल के स्त्रोतों तथा नदियों के वर्षा-जल के निरन्तर पूर्ति के नियंत्रक होने के साथ-साथ जलवायु के लिए वायुमण्डल को आर्द्रता की पूर्ति भी करते हैं |
Management of natural resources in Hindi
  • वन न केवल जल तथा वायु के कारणों से होने वाले कटाव से उपजाऊ मिट्टी की रक्षा करते है बल्कि वे सक्रिय अजैव चट्टानों से उर्वरा मिटटी की रचना करने वाले महत्वपूर्ण कारकों में से एक हैं । वन, पर्यावरण को स्वच्छ रखने तथा प्राकृतिक संतुलन को कायम रखने में सहायक होते हैं । वनों के बिना स्वच्छ पर्यावरण संभव नहीं है। पिछलें कुछ वर्षों में ‘लकड़ी की मांग बढने के साथ-साथ जिस प्रकार इसके दामों में वृद्धि हुई है उसे देखते हुए लकड़ी का व्यापार इतना अधिक बढ गया है कि दुनिया भर के जंगलों को खतरा उत्पन्न हो गया। उनका क्षेत्रफल कम होने के कारण जगह-जगह सूखा पड़ने लगा है। जहाँ कहीं पानी बरसता है, पेड़ों के अभाव में ‘उपजाऊ मिटटी बह जाती है | पेड़ों की कटाई का असर पहाड़ों पर भी होने के कारण पानी बरसने पर वहां से मिट्टी बहकर नदियों में आ जाती है फलस्वरुप नदियाँ इतनी उथली हों गई है कि थोड़ा सा जलस्तर बढ़ने पर बाढ़ आ जाती & | जंगलों की रक्षा का सवाल आज हमारे लिए जीवन और मौत का सवाल बन गया हैं |
  • पिछलें कुछ वर्षों में तेजी से हुए जंगलों के विनाश के बावजूद भारत में लगभग 45,000 स्पीशीज के पुष्पीय पौधें एवं इससे दुगुनी स्पीशीज शेष वनस्पति समूह की पायी जाती हैं | पौधो की कुल उपलब्ध जातियों में से 45 प्रतिशत आर्थिक महत्व की है । भारतीय वन लगभग 8 लाख कि.मी क्षेत्र में फैले हैं। भारत में मुख्य रुप सें उष्ण कटिबंधीय वन पाए जाते हैं । SO कटीबंधीय सदाबहार वनों की एक विशेषता यह है कि इनमें जैव विविधता अत्यधिक होती है। देश के कुछ हिस्सों में शीतोष्ण जलवायु के पर्णपाति वन भी पाए जाते हैं ।
  • वनोपज के रुप में इनसे 35 लाख घन मीटर टिम्बर, 13 लाख घन मीटर जलाऊ लकड़ी एवं असंख्य प्रकार के उत्पाद जैसे- बाँस, औषधियाँ, गोंद, रेजिन, रबड़, सुगंधित तेल, तेल बीज एवं अनेक उपयोगी उत्पाद प्राप्त होते हैं |
  • वनों की रक्षा आज की प्राथमिकता है | उपग्रहों से प्राप्त आंकड़े बतलाते है कि हमारे देश में प्रतिवर्ष 1.3 मिलियन हेक्टेयर जंगल कम होते जा रहे है। जनसंख्या में वृद्धि के साथ-साथ वनों को काटकर कृषि के लिए भूमि साफ की जाती है | विभिन्न निर्माण कार्यों, कारखानों, पशुपालन आदि के लिए विश्वभर में वन काटे जा रहे हैं आरम्भ में जहाँ पृथ्वी के लगभग 70 प्रतिशत भू-भाग पर वन थे वहाँ आज मात्र 16-17 प्रतिशत भाग वनों से आच्छादित है। वन-उन्मूलन का एक कारण झूम-खेती को भी माना जाता है। इस प्रकार की खेती में किसी क्षेत्र विशेष की वनस्पति को जला कर राख कर दी जाती है जिसमें वहां की भूमि की उर्वरता में वृद्धि होने से दो-तीन वर्ष अच्छी फसल ली जाती है | उर्वरता कम होने पर अन्य क्षेत्र में यही विधि अपनायी जाती है। हमारे देश में नागालैड, मिजोरम, मेघालय, अरुणाचल, त्रिपुरा तथा आसाम में आदिवासी इसे अपनाते हैं |
  • वन-उन्मूलन के दुष्प्रभावों में प्राकृतिक संसाधनों का क्षय, मृदा अपरदन, वनीय जीवन का विनाश, जलवायु में परिवर्तन, मरुस्थली करण, प्रदूषण में वृद्धि आदि उल्लेखनीय हैं |

वनों के सरंक्षण हेतु निम्न उपाय अपनायें जा सकते है-

1. वनों की पोषणीय सीमा तक ही कटाई की जानी चाहिए, वन काटनें व वृक्षारोपण की दरों में समान अनुपात होना AR |

2. वनों की आग से सुरक्षा की जानी चाहिए इस हेतु निरीक्षण गृह तथा अग्नि रक्षा पथ बनाने चाहिए।
3. वनों को हानिकारक कीटों से दवा छिड़क कर तथा रोगग्रस्त वृक्ष को हटाकर रक्षा की जानी चाहिए।
4. विविधता पूर्ण वनों को एकरुपता पूर्ण वनों से अधिक प्राथमिकता मिलनी चाहिए |
5. कृषि व आवास हेतु वन भूमि के उन्मूलन एव झूम पद्धति की कृषि पर रोक लगायी जानी चाहिए।
6. वनों की कटाई को रोकने के लिए ईंधन व इमारती लकड़ी के नवीन वैकल्पिक स्त्रोतों को काम में लिया जाना चाहिए।
7. बाँधों एवं बहुउद्देशिय योजनाओं को बनाते समय वन संसाधन सरंक्षण का ध्यान रखना चाहिए |
8. वनों के महत्व के बारे में जन चेतना जागृत की जाए। चिपको आन्दोंलन, शांत घाटी क्षेत्र आदि इसी जागरुकता के परिणाम है | वन संरक्षण में सामाजिक व स्वंयसेवी संस्थाओं की महती भूमिका है |
9. सामाजिक वानिकी को प्रोत्साहन देना श्रेयस्कर है | 40. वन संरक्षण के नियमों व कानूनों की कड़ाई से अनुपालना होनी चाहिए |

5 सामाजिक वानिकी (Social forestry)

  • देश में लगभग एक करोड़ हेक्टेयर से अधिक अवक्रमित भूमि पर प्रति वर्ष वनरोपण की आवश्यकता है ताकि पारिस्थितिकीय संतुलन को बनाया जा सके | सामाजिक वानिकी के द्वारा इस लक्ष्य की प्राप्ति संभव है इससे न केवल वन क्षेत्रों में वृद्धि होगी वरन बड़े पैमाने पर रोजगार का सृजन होगा। राष्ट्रीय वन नीति से पूर्व राष्ट्रीय कृषि आयोग ने भी वन क्षेत्र को बढाने के लिए सामाजिक वानिकी को अपनाने के सुझाव दिए थे, ताकि वनों के क्षेत्र में विस्तार के साथ ही गांव वालों को. चारा, जलाऊ लकड़ी, व गौण वनोत्पाद प्राप्त हो सके | इसे लोगों का, लोगों के लिए, लोगों द्वारा कार्यक्रम के रुप में मान्यता प्राप्त हुई |

समाजिक वानिकी के तीन प्रमुख घटक हैं –

1. कृषि वानिकी (Agro- forestry)
2. वन विभाग द्वारा नहरों, सड़कों, अस्पताल आदि सार्वजनिक स्थानों पर सामुदायिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु वृक्षारोपण करना |
3. ग्रामीणों द्वारा सार्वजनिक भूमि पर वृक्षारोपण |

{ *सामान्य विज्ञान* } General Science Notes  :- यहाँ क्लिक करें ! 

प्रमुख प्राकृतिक संसाधन FAQ –

प्रश्न 1. खेजड़ली के बलिदान से सबंधित है
(क) बाबा आमटे
(ख) सुन्दरलाल बहुगुणा
(ग) अरुन्धती राय
(घ) अमृता देवी

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उत्तर ⇒ { (घ) अमृता देवी }

प्रश्न 2. भू-जल संकट के कारण हैं
(क) जल-स्रोतों का प्रदूषण
(ख) भू-जल का अतिदोहन
(ग) जल की अधिक मांग
(घ) उपरोक्त सभी

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उत्तर ⇒ { (घ) उपरोक्त सभी }

प्रश्न 3. लाल आंकड़ों की पुस्तक सम्बन्धित है
(क) संकटग्रस्त वन्य जीवों से
(ख) दुर्लभ वन्य जीवों से
(ग) विलुप्त जातियों से
(घ) उपरोक्त सभी

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उत्तर ⇒ { (घ) उपरोक्त सभी }

प्रश्न 4. सरिस्का अभयारण्य स्थित है
(क) अलवर में
(ख) जोधपुर में
(ग) जयपुर में
(घ) अजमेर में

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उत्तर ⇒ { (क) अलवर में }

प्रश्न 5. सर्वाधिक कार्बन की मात्रा उपस्थित होती है
(क) पीट में
(ख) लिग्नाइट में
(ग) एन्थेसाइट में
(घ) बिटुमिनस में

उत्तर ⇒ ???????

प्रश्न 1. संकटापन्न जातियों से क्या तात्पर्य है?
उत्तर- वे जातियाँ जिनके संरक्षण के उपाय नहीं किये गये तो निकट भविष्य में समाप्त हो जायेंगी।

प्रश्न 2. राष्ट्रीय उद्यान क्या है?
उत्तर- राष्ट्रीय उद्यान वे प्राकृतिक क्षेत्र हैं, जहाँ पर पर्यावरण के साथ-साथ वन्य जीवों एवं प्राकृतिक अवशेषों का संरक्षण किया जाता है।

प्रश्न 3. सिंचाई की विधियों के नाम बताइये।
उत्तर- सिंचाई फव्वारा विधि व टपकन विधि से की जाती है।

प्रश्न 4. उड़न गिलहरी किस वन्य जीव अभयारण्य में पायी जाती है?
उत्तर- सीतामाता तथा प्रतापगढ़ अभयारण्य

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