Potential energy in Hindi
स्थितिज ऊर्जा (Potential energy)
- हम सभी को यह अनुभव है कि जब ऊँचाई से किसी वस्तु को छोड़ा जाए तो वस्तु पृथ्वी की ओर गिरने लगती है। इसी प्रकार जब एक R को थोड़ा सा खींचकर छोड दें तो स्प्रंग पुनः अपनी प्रारम्मिक अवस्था में आ जाती है। यदि हम स्प्रिंग को थोड़ा संपीडित करके मुक्त करें तो भी वह पुनः अपनी सामान्य स्थिति की तरफ लौट आती है।
![स्थितिज ऊर्जा किसे कहते हैं | प्रकार, सूत्र, उदाहरण ( Potential energy in Hindi ) 1 Potential energy in Hindi](https://www.examsector.com/wp-content/uploads/2023/09/photo_2023-09-01_10-05-28.jpg)
- इन उदाहरणों में हम देखते हैं कि वस्तु द्वारा पृथ्वी की ओर आने में अथवा स्प्रिंग के अपनी सामान्य अवस्था में वापस आने में कुछ कार्य होता है | यह कार्य तभी संभव हो सकता है जब एक अवस्था से मुक्त करते समय उस वस्तु में कार्य करने की क्षमता हो। जब एक कसे हुए धनुष से तीर को छोड़ा जाता है तो तीर ‘दूर तक चला जाता है | निश्चित रूप से कसे हुए कमान में कार्य करने की क्षमता या ऊर्जा निहित है।
- स्थितिज ऊर्जा वस्तु की वह ऊर्जा है जो वस्तु की स्थिति या अवस्था के कारण उसमें संचित होती है। इसी ऊर्जा के कारण वस्तु में कार्य करने की क्षमता आ जाती हैं। वस्तु को सामान्य स्थिति से किसी अन्य अवस्था तक लाने में जितना कार्य किया गया है, उसका परिमाप ही नवीन अवस्था में उस वस्तु की स्थितिज ऊर्जा के बराबर होगा।
![स्थितिज ऊर्जा किसे कहते हैं | प्रकार, सूत्र, उदाहरण ( Potential energy in Hindi ) 2 Potential energy in Hindi](https://www.examsector.com/wp-content/uploads/2023/09/photo_2023-09-01_10-05-30.jpg)
- जब तीर को चलाने के लिये हम धनुष को खींचते हैं तो हमारे द्वारा जितना कार्य धनुष खींचने में किया जाता है उसके तुल्य ऊर्जा ही कसी हुई अवस्था में कमान की स्थितिज ऊर्जा होगी | इसी प्रकार रबर को खींचने, स्प्रिंग को संपीडित करने अथवा खींचने एवं वस्तु को किसी ऊंचाई तक उठाने में कार्य किया जाता है। इसी कार्य के फलस्वरूप वस्तु में ऊर्जा स्थानान्तरित हो जाती है जिसे स्थितिज ऊर्जा कहते है।
गुरूत्वीय क्षेत्र में स्थितिज ऊर्जा
- जब किसी वस्तु को पृथ्वी की सतह से किसी ऊंचाई ‘तक ऊपर उठाते है तो हमे गुरूत्वीय त्वरण के विरूद्ध कार्य करना पड़ता है | वस्तु पर किया गया यह कार्य वस्तु की ऊर्जा में वृद्धि करता है। यह ऊर्जा वस्तु की स्थितिज ऊर्जा के रूप में उसमें निहित हो जाती 2 किसी वस्तु को पृथ्वी की सतह से सीधा ऊपर उठाने के लिए न्यूनतम आवश्यक बल वस्तु के भार के बराबर होना चाहिये | यदि m द्रव्यमान की किसी वस्तु को पृथ्वी की सतह से h ऊँचाई तक ऊपर उठाया जाए तो न्यूनतम बल वस्तु के भार (= mg) के बराबर होना चाहिये |
सरल लोलक की स्थितिज ऊर्जा
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![स्थितिज ऊर्जा किसे कहते हैं | प्रकार, सूत्र, उदाहरण ( Potential energy in Hindi ) 5 सरल लोलक की स्थितिज ऊर्जा](https://www.examsector.com/wp-content/uploads/2023/09/photo_2023-09-01_10-05-38.jpg)
कार्य, शक्ति तथा उर्जा Work, Power and Energy FAQ –
Q. कार्य का मात्रक है
(क) न्यूटन
(ख) जूल
(ग) वाट
(घ) इनमें से कोई नहीं
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Q. शक्ति का मात्रक है–
(क) न्यूटन
(ख) वाट
(ग) जूल
(घ) न्यूटन-मीटर
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Q. पृथ्वी की ओर मुक्त रूप से गिरती हुई वस्तु की कुल ऊर्जा का मान
(क) बढ़ता जाता है।
(ख) घटता जाता है।
(ग) स्थिर रहता है।
(घ) शून्य हो जाता है।
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Q. यदि एक वस्तु का वेग दो गुना कर दिया जाए तो वस्तु की गतिज ऊर्जा कितनी होगी?
(क) एक-चौथाई
(ख) आधी
(ग) दोगुनी।
(घ) चार-गुनी
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Q. विद्युत ऊर्जा का व्यावसायिक मात्रक है
(क) जूल
(ख) वाट-सेकण्ड
(ग) किलोवाट घण्टा
(घ) किलोवाट प्रति घण्टा
उत्तर ⇒ ???????
प्रश्न 1. कार्य की परिभाषा दीजिये एवं इसका मात्रक लिखिये।।
उत्तर- जब किसी वस्तु पर बल F लगाया जाये तथा इस बल से वस्तु में विस्थापन s हो तो बल द्वारा किया गया कार्य, बल और बल की दिशा में विस्थापन के गुणनफल के बराबर होता है।
अतः कार्य (W) = बल (F) x विस्थापन (S)
W = F.S
कार्य का मात्रक MKS पद्धति में जूल है।
प्रश्न 2. ऊर्जा क्या है ? ऊर्जा का मात्रक लिखिये।
उत्तर- किसी वस्तु के कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहते हैं। ऊर्जा एक अदिश राशि है। ऊर्जा का मात्रक जल होता है।
प्रश्न 3. गतिज ऊर्जा से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- गतिज ऊर्जा-किसी वस्तु में उसकी गति के कारण निहित ऊर्जा को गतिज ऊर्जा कहते हैं। जैसे-उड़ता हुआ हवाई जहाज, नदी में बहता हुआ पानी आदि में कार्य करने की क्षमता उनमें विद्यमान गतिज ऊर्जा के कारण है।
प्रश्न 4. स्थितिज ऊर्जा क्या होती है?
उत्तर- वस्तु की स्थिति अथवा अवस्था के कारण वस्तु में विद्यमान ऊर्जा को स्थितिज ऊर्जा कहते हैं।
प्रश्न 5. ऊर्जा संरक्षण नियम बताइये।
उत्तर- इस नियम के अनुसार किसी विलगित निकाय की कुल ऊर्जा सदैव स्थिर रहती है। ऊर्जा न तो उत्पन्न की जा सकती है और न ही ऊर्जा को नष्ट किया जा सकता है। ऊर्जा को केवल एक रूप से दूसरे रूप में रूपान्तरित किया जा सकता है।