सरल मशीन व सरल मशीन के प्रकार (Saral Machine kya hai Notes in Hindi)
सरल मशीन व सरल मशीन के प्रकार (Saral Machine kya hai Notes in Hindi)
Saral Machine kya hai Notes in Hindi
- वे साधन जिनकी सहायता से कार्य को शीघ्रता, सुविधा व सरलतापूर्वक किया जा सके, उन्हें मशीन कहते हैं।
- सरल मशीन : उन सभी उपकरणों को, जिन्हें चलाने हेतु केवल पेशीय बल का उपयोग किया जाता है, उन्हें सरल मशीन कहते हैं।
निम्नलिखित उपकरण सरल मशीनें हैं-
- I. नतसमतल (Inclined Plane)
II. पहिया एवं धुरी (Wheel and Axel)
III. उत्तोलक (Léver)
IV. farcit (Pully)
V. पच्चर (Wedge)
VI. पेच (Screw) - इन सरल मशीनों को चलाने के लिए किसी अतिरिक्त ऊर्जा स्रोत की आवश्यकता नहीं होती है।
- जटिल मशीन- वह मशीन जिसको चलाने के लिए सरल मशीन के साथ-साथ विद्युत मोटर, चेन, गियर आदि का उपयोग किया जाता है, जटिल मशीन कहलाती है। जैसे साइकिल, मोटर, साइकिल, सिलाई मशीन, कुट्टी काटने की मशीन, बड़े-बड़े कल-कारखाने आदि।
सरल मशीनों के प्रकार –
- नतसमतल – भारी ड्रमों को गाड़ी में बढ़ाने तथा सड़क से मीटर साइकिल को ऊँचाई पर बने मकानों में चढ़ाने के कार्य को सुगम बनाने के लिए झुके हुए तल का उपयोग किया जाता है, इस नतसमतल कहते हैं।
इसके अलावा भी घरों में काम आने वाली सीढी व पहाड़ी पर चढ़ने के लिए प्रयुक्त ढलानकार मार्ग नतसमतल के उदाहरण हैं। - धुरी एवं पहिया- पहिया एक सरल मशीन है। मानव ने सर्वप्रथम पहिए काही आविष्कार किया था।
साइकिल का पहिया इसके केन्द्र पर लगी एक छड़ के चारों ओर धूमता है, इसे धुरी कहते हैं। पहिया व धुरी भी सरल मशीन है। - उत्तोलक- प्राचीनकाल से प्रयोग की जाने वाली मशीनों में सबसे सरलतम मशीन उत्तोलक है।
सब्बल एक प्रकार का उत्तोलक है। व्यक्ति बड़े पत्थर को ऊँचा करने का प्रयास करने के लिए सब्बल के एक सिरे E पर नीचे की ओर बल लगाता है। इस प्रयास या बल को आयास (Effort) कहते हैं तथा सिरे E को ‘आयास बिन्दु’ कहते हैं।
उत्तोलक द्वारा भार उठाने में सुविधा होती है।
वस्तुतः “संतुलन की प्रत्येक अवस्था में ‘भार तथा भार भजा का गुणनफल’, ‘आयास तथा आयास भुजा के गणनफल’ के समान होता है।”
इसे निम्नानुसार सूत्र के रूप में व्यक्त किया जा सकता है-
यही उत्तोलक का सिद्धान्त है।-
भार x भार भुजा = आयास x आयास भुजा
w x d = E x D - घिरनी-घिरनी एक छोटा सा पहिया होता है। ये प्रायः ढलवा लोहे की बनी होती है जिनके बीच का भाग घिरनी के छिद्र (Hole) से बाजुओं द्वारा जुड़ा होता है। इनकी संख्या 4 या 6 होती है। पहिया अपने गुरुत्व केन्द्र से जाने वाली तथा स्वयं के तल के लम्बवत धुरी के चारों और स्वतंत्रतापूर्वक घूमता है।
घिरनी का प्रयोग बड़े-बड़े कारखानों, क्रेनों, मकानों में भारी वस्तुओं को ऊपर चढाने में, मंच से पर्दा हटाने आदि कार्यों में किया जाता है। - पच्चर या वेज (Wedge) : कृषि अथवा सुथारी कार्य करने वाले के कुल्हाड़ी तथा छैनी में दो परस्पर झुके हुए तल होते हैं, जिससे ये उपकरण आगे से तीखे व पीछे से मोटे होते हैं। इस प्रकार की आकृति को वेज आकृति’ कहते हैं। छैनी व कुल्हाड़ी की वेज आकृति के कारण ही ये आसानी से लकड़ी में घुस जाती है। कार्य को सरलता से सम्पन्न करने के कारण ही वेज एक सरल मशीन है।
- पेच – वह सरल उपकरण जो दो भागों को परस्पर जोड़ने (कसने) के काम आता है, उसे पेच कहते हैं। पेच को कसने के लिए इनकी घड़ी की सुईयों के घूमने की दिशा में घुमाया जाता है जबकि इसे खोलने के लिए घड़ी की सुईयों के घुमने के विपरीत दिशा में घुमाया जाता है।
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