वायु एवं वायु के घटक
vayu avn vayu ke ghatak kya hai
- वायु अर्थात् हवा गैसों का मिश्रण है। वायु रंगहीन, गंधहीन और स्वादहीन होती है। हमारी पृथ्वी के चारों ओर वायु की एक पतली परत होती है। इसे वायुमण्डल कहते हैं।
वायु के घटक –
1. जल वाष्य- जब वातावरण की वायु किसी ठण्डी सतह के सम्पर्क में आती है तो उसमें उपस्थित जल वाष्प संघनित होकर ठण्डी सतह पर जल की बूंदों में परिवर्तित हो जाती है।
2. ऑक्सीजन- ऑक्सीजन गैस जलने में सहायक है। वायु का एक अवयव ऑक्सीजन है। जो वायु की कुल मात्रा का लगभग 21 प्रतिशत है।
3. नाइट्रोजन- वायु की कुल मात्रा का लगभग 78% नाइट्रोजन है।
4. कार्बन डाइऑक्साइड- जन्तु श्वसन के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड गैस वातावरण में छोड़ते हैं। इसी प्रकार कई वस्तुएँ जलने पर कार्बन डाइऑक्साइड गैस वातावरण में छोड़ती है। यही कार्बन डाइऑक्साइड गैस वायु का एक घटक है। वायु की कुल मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड 0.03 प्रतिशत में उपस्थित होती है।
5. धूल तथा धुआँ- ईंधन एवं पदार्थों का दहन करने से धुआँ उत्पन्न होता है धुएँ में कुछ गैस एवं सूक्ष्म कण होते हैं।
वायुमण्डल में उपलब्ध वायु के घटक –
- नाइट्रोजन – 78%
- ऑक्सीजन – 21%
- कार्बन डाइऑक्साइड – 0.03%
- अन्य गैसें – 0.97%
वायुमण्डल में ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन व अन्य गैसों का अनुपात निश्चित होता है। जिन्हें वायु के घटक कहते हैं।
वायुमण्डल में ऑक्सीजन गैसें कैसे प्रतिस्थापित होती हैं ?
- जन्तु व पौधे श्वसन में वायुमण्डल से ऑक्सीजन गैस ग्रहण करते है। व कार्बन डाइऑक्साइड गैस वायुमण्डल में बाहर छोड़ते हैं।
- पौधे प्रकाश संश्लेषण के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड गैस गण करते हैं तथा ऑक्सीजन गैस बाहर छोड़ते हैं।
- उक्त दोनों क्रियाओं के साथ-साथ चलने से वायुमण्डल में ऑक्सीजन गैस व कार्बन डाइऑक्साइड गैस की मात्रा का अनुपात निश्चित रहता है। अतः पौधे और जन्तु एक दूसरे पर निर्भर हैं।
वायु के उपयोग –
- वायु वस्तुओं के जलने में सहायक है।
- वायु नावों को चलाने, पैराशूट, ग्लाइडर तथा हवाई जहाज को उड़ाने में सहायता करती है। पक्षी, चमगादड़ आदि वायु के कारण ही उड़ पाते हैं।
- वायु फूलों के परागण में सहायक है। यह बीजों के प्रकीर्णन में भी सहायक है।
- वायु, बादल बनने तथा बादलों की गति के लिए आवश्यक है।
- वायु की सहायता से पवनचक्की चलती है जो विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करती है।
पवनचक्की- वायु के गतिशील होने से उत्पन्न गतिज ऊर्जा को पवन ऊर्जा कहते है, जो पवनचक्की की पंखुड़ियों को घुमाने में सहायक होती है। राजस्थान के जैसलमेर, बाड़मेर, प्रतापगढ़ जिलों में पवनचक्की का उपयोग होता है।
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