जलवायु परिवर्तन पर निबंध (Essay on Climate Change in Hindi)

जलवायु परिवर्तन पर निबंध (Essay on Climate Change in Hindi)

  • किसी स्थान की औसत मौसमी दशाओं को जलवायु कहते हैं । जब इन औसत मौसमी दशाओं (तापमान, वर्षा, आर्द्रता, दाब आदि) में परिवर्तन हो जाता है, तो उसे जलवायु परिवर्तन कहते हैं । पृथ्वी के भूगर्मिक इतिहास के अध्ययनों से यह प्रमाणित हो चुका है कि पृथ्वी पर आरम्भ से जलवायु परिवर्तन हो रहे हैं। जहाँ वर्तमान में मरूस्थलीय प्रदेश हैं, वहाँ प्राचीनकाल में हरे-भरे खेत लहराते थे। इसी प्रकार जहाँ आज स्थलीय भाग हैं, वहाँ पहले जलीय भाग थे। इन परिवर्तनों के प्रमाण हैं । इन जलवायु परिर्तनों को शैलों के स्वरूप, शैल क्रम, झीलों व जलीय भागों में जमा निक्षेपों, जीवाश्मों, रेडियो आइसोटोप्स आदि के अध्ययनों के आधार पर प्रमाणित किया जाता है। इस बात के भी प्रमाण है कि पृथ्वी पर चुम्बकीय ध्रुवों की स्थितियों में परिवर्तन होते रहे हैं। पृथ्वी पर क्रमिक रूप से हिमयुगों का आगमन होता रहा है। इन हिमयुगों के समय पृथ्वी पर सभी भागों पर बर्फ की चादर फैल गई थी ।
  • सन 1640 में वायुदाब मापी तथा थर्मामीटर एवम् सन् 1676 में वर्षामापी के आविष्कार के बाद जलवायु का व्यवस्थित अध्ययन किया जाने लगा। परिणामस्वरूप जलवायु परिवर्तनों का अध्ययन भी विधिपूर्वक होने लगा ।

वर्तमान में पृथ्वी की जलवायु में निम्नलिखित प्रकार के परिवर्तन हो रहे हैं :

  1.  पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि हो रही है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि सन् 2050 तक पृथ्वी का तापमान 1.5° से 4.5° सेल्शियस तक बढ़ जायेगा ।
  2.  पृथ्वी पर वर्षा की मात्रा एवम् क्षेत्रीय वितरण तथा ऋतु चक्र में परिवर्तन हो रहा है ।
  3.  हिमनदों की बर्फ पिघल रही है । फलस्वरूप वे पीछे की ओर सिकुड़ रहे हैं ।
  4. समुद्रों के जलस्तर में वृद्धि हो रही है। इसके परिणामस्वरूप समुद्र तटीय भागों पर जल का विस्तार हो रहा है। मालदीव एवं असंख्य प्रशान्त महासागरीय द्वीप इस खतरे की चपेट में आ चुके हैं।

महत्वपूर्ण बिन्दु –

  1. किसी स्थान विशेष पर किसी विशेष समय में वायुमण्डलीय दशाओं को ‘मौसम’ कहते हैं। किसी बड़े क्षेत्र पर लम्बी अवधि तक औसत मौसमी दशाओं को ‘जलवायु’ कहते हैं ।
  2. संसार की जलवायु का वर्गीकरण सर्वप्रथम प्राचीन यूनानियों द्वारा किया गया था। जर्मन विद्वान कोपेन ने तापमान तथा वर्षा के आधार पर जलवायु का वर्गीकरण किया। थार्नवेट ने जलवायु का वर्गीकरण तापमान, वर्षा तथा वाष्पीकरण के आधार पर किया ।
  3. ट्रीवार्था ने कोपेन के वर्गीकरण में संशोधन करके जलवायु का अपेक्षाकृत सरल वर्गीकरण प्रस्तुत किया। ट्रीवार्था ने विश्व की जलवायु को कुल 6 प्रमुख समूहों में विभाजित किया ।
  4. ‘हरित गृह प्रभाव’ के कारण पृथ्वी का तापमान निरन्तर बढ़ रहा है। कार्बन-डाई-ऑक्साइड, जलवाष्प, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, क्लोरो फ्लोरो कार्बन आदि गैसें इस हरित गृह प्रभाव के लिए उत्तरदायी हैं ।
  5. हरित गृह प्रभाव के कारण समस्त जैवमण्डल को खतरा उत्पन्न हो गया है। पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि को ‘भूमण्डलीय ऊष्मन कहते हैं।
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जलवायु परिवर्तन (Climate Change) FAQ –

प्रश्न- वायु में कार्बन डाइआक्साइड की बढ़ती हुई मात्रा से वायुमंडल का तापमान धीरे-धीरे बढ़ रहा है क्यों ?
उत्तर- कार्बन डाइआक्साइडड सौर विकिरण को अवशोषित करती है ।
प्रश्न- कौन सी गैस है जो जीवन के लिए लाभदायक और हानिकारक दोनों ही है ?
उत्तर- कार्बनडाइआक्साइड
प्रश्न- जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारक कौन से हैं ?
उत्तर- जीवाश्मिक ईंधन का अधिकाधिक प्रज्जवलन, तेल चलित स्वचलितों की संख्या विस्फोट, अत्याधिक वनोन्मूलन
प्रश्न- वायुमंडल में कार्बन डाइआक्साइडड की सांद्रता कितनी है?
उत्तर- 0.03 प्रतिशत
प्रश्न- धान के खेतों से कौन सी गैस निकलती है जो ग्लोबल वार्मिंग का कारण है?
उत्तर- मीथेन
प्रश्न- दीमक की बाम्बी से कौन सी गैस निकलती है ?
उत्तर- मीथेन

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