Ocean Temperature Notes in Hindi
महासागरीय तापमान (Oceanic Temperature)
- महासागरीय जल का तापमान वनस्पति जगत तथा जीव जगत दोनों के लिए महत्वपूर्ण होता है । महासागरीय जल का तापमान न केवल महासागरों में रहने वाले जीवों तथा वनस्पतियों को प्रभावित करता है, अपितु तटवर्ती स्थलीय भागों की जलवायु को (परिणामस्वरूप जीव तथा वनस्पति को ) भी प्रभावित करता है। इसी कारण सागरीय जल के तापमान का अध्ययन महत्वपूर्ण हो चला है । सागरीय जल के तापमान का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्त्रोत सूर्य है। सूर्य के अलावा तापमान की कुछ मात्रा सागर तली के नीचे पृथ्वी के आन्तरिक भाग तथा जल की दबाव प्रक्रिया से प्राप्त होती है, परन्तु यह मात्रा नगण्य होती है ।
महासागरीय जल के तापमान को प्रभावित करने वाले कारक-
- अक्षांश – भूमध्यरेखा से उत्तर या दक्षिण अर्थात् ध्रुवों की ओर जाने पर सतही जल का तापक्रम घटता जाता है, क्योंकि सूर्य की किरणें ध्रुवों की ओर तिरछी होती जाती हैं, परिणामस्वरूप सूर्यातप की मात्रा भी ध्रुवों की ओर घटती जाती है । भूमध्यरेखा से 40° से उ. तथा द. अक्षांशों के मध्य महासागरीय जल का तापक्रम वायु के तापक्रम से कम किन्तु 40° से ध्रुवों के बीच अधिक रहता है ।
- जल एवम् स्थल के वितरण में असमानता – गोलार्द्ध में स्थल की अधिकता तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में जल की अधिकता के कारण तापक्रम के वितरण में असमानता पाई जाती है ।
- दिन की अवधि – दिन की लम्बाई अधिक होने पर सूर्यातप की मात्रा अधिक प्राप्त होने के कारण महासागरीय जल अपेक्षाकृत अधिक गरम होता है। इसके विपरीत दिन की अवधि छोटी होने पर महासागरीय जल में सूर्यातप की मात्रा कम ग्रहण हो पाती है।
- वायुमण्डल की स्वच्छता वायुमण्डल स्वच्छ होने पर सूर्यातप अधिक मात्रा में जल तल तक पहुँचने के कारण महासागरीय जल को अधिक गरम करता है । वायुमण्डल के पारगम्यता में कमी के कारण सूर्यातप कम प्राप्त होने से महासागरीय जल कम गरम होता है। क्योंकि सूर्यातप की काफी मात्रा वायुमण्डल के उथलेपन को बढ़ाने वाले धूलकण अवशोषित कर लेते हैं ।
- सूर्य से पृथ्वी की दूरी जब पृथ्वी सूर्य के निकटतम होती है तो सूर्यातप अधिक प्राप्त होने से महासागरीय जल अधिक गरम होता है ।
- सौर्य कलंकों की संख्या – पृथ्वी की ओर सौर्य कलंकों की संख्या अधिक होने पर सूर्यातप अधिक व इनकी संख्या कम होने पर सूर्यातप कम प्राप्त होता है । कलंकों का सम्बन्ध सूर्य की चुम्बकीय शक्ति से होता है ।
- समुद्री धाराएँ – समुद्री धाराएँ अपने प्रवाह क्षेत्र के सागरीय तापमान को प्रभावित करती हैं । ठण्डी धाराएँ अपने प्रवाहित क्षेत्र सागरीय जल के तापमान को कम तथा गरम धाराएँ तापमान को बढ़ाती हैं।
महासागरीय तापमान का क्षैतिज वितरण
- महासागरीय जल में तापमान सामान्यतः बढ़ते अक्षांशों के साथ साथ घटता जाता है । महासागरीय जल के तापमान के क्षैतिज वितरण का विस्तृत रूप निम्नानुसार तालिका में दिया है-
- उपरोक्त तालिका से स्पष्ट है कि तापमान सामान्यतः ध्रुवों की ओर घटता जाता है । केवल अटलाण्टिक महासागर में 20° से 30° उत्तरी अक्षांशों के मध्य तापमान में थोड़ी वृद्धि होकर पुनः गिरावट का क्रम जारी रहता है । हिन्द महासागर में बीस से तीस डिग्री अक्षांशों तक विस्तार कम होने के कारण तापमान की गिरावट की दर काफी कम रहती है। मोटे रूप में ध्रुवों की ओर तापमान के कम होने की दर आधा डिग्री सैल्शियस प्रति अक्षांश है ।
तापमान का लम्बवत् वितरण
- महासागरीय जल में तापमान का लम्बवत् वितरण ताप अवशोषण की मात्रा, जल धारा द्वारा उसके क्षैतिज विस्थापन तथा जल की लम्बवत् गति पर निर्भर करता है ।
- महासागरीय जल में सूर्य की किरणें 25 मीटर तक प्रवेश करके ऊष्णता प्रदान करती हैं । इस गहराई के बाद सूर्य विकिरण का प्रभाव नगण्य हो जाता है । अतः सूर्यातप के कारण महासागरीय सतही जल अधिक गरम होता है । ध्रुवीय क्षेत्रों में ठण्डा जल भारी होने के कारण नीचे बैठता है और भूमध्य रेखीय क्षेत्रों का उष्ण जल हल्का होने के कारण सतही धाराओं के ध्रुवों की ओर प्रवाहित होता रहता है । इस प्रकार महासागरीय जल के तापमान का संचरण होता रहता है ।
- महासागरीय जल की सतह से गहराई की ओर तापमान 2000 मीटर की गहराई तक तीव्र गति से गिरता है। उस गहराई के पश्चात् तापमान की गिरावट दर काफी कम हो जाती है । यह तथ्य खुले महासागरों में देखने को मिलता है। आंशिक रूप से घिरे हुये महासागरों में जैसे भूमध्य सागर व लाल सागर आदि में तापमान की गिरावट निकटवर्ती खुले महासागरों की अपेक्षा काफी कम होती है ।