महासागरीय जल और स्थलाकृति (ocean water and its topography in hindi)
ocean water and its topography in hindi
- पृथ्वी के लगभग 71 प्रतिशत भाग पर जल ही जल जिसे जल मण्डल कहते हैं। इसमें सागर तथा महासागर सम्मिलित है। पृथ्वी के अतिरिक्त अन्य कोई ऐसा ग्रह नहीं है जिस पर इतना जल मौजूद हो। इस आधार पर पृथ्वी को ‘जलीय ग्रह’ भी कहते हैं । स्थल खण्ड की तरह महासागरीय तल भी विषम एवं जटिल है । महासागरों की औसत एवं वास्तविक गहराई स्थल खण्ड की औसत ऊँचाई से कहीं अधिक है । जहाँ स्थल खण्ड का सर्वोच्च शिखर माउण्ट एवरेस्ट 8850 मीटर ऊँचा है वहीं महासागरों की सबसे गहरी खाई मेरियाना ट्रेन्च (प्रशान्त महासागर) 11,033 मीटर गहरी है। महाद्वीपों की औसत ऊँचाई 840 मीटर है जबकि महासागरों की औसत गहराई 3808 मीटर है ।
महासागरों की स्थलाकृतियाँ
- समुद्र तल के नीचे भी स्थल के समान पर्वत, पठार, मैदान और गहरी खाईयाँ पाई जाती हैं । स्थलाकृति में किसी स्थान के धरातलीय आकारों का वर्णन किया जाता है । विश्व में मौजूद महासागरों में एक समान स्थलाकृतियाँ नहीं पाई जाती ।
प्रशान्त महासागर की स्थलाकृतियाँ –
- विश्व का सबसे बड़ा महासागर है जो पृथ्वी के लगभग 1/3 भाग को घेरे हुए है। यह त्रिकोणात्मक आकृति में पूर्व से पश्चिम 18,000 किमी. चौड़ा है तथा उत्तर से दक्षिण 16,740 किमी. लम्बा है। इसके तटों पर ज्वालामुखी पर्वत श्रेणियाँ, भूकम्प प्रभावित क्षेत्र व द्वीप समूह पाये जाते हैं। इसमें 20,000 से अधिक द्वीप हैं जिनको तीन भागों में (1) मेलानेशिया (2) माइक्रोनेशिया तथा (3) पोलिनेशिया में विभाजित किया गया है। यहाँ पर अनेक द्रोणियाँ, लम्बे कटक, पठार, कगार व चबूतरे मौजूद हैं। इसी प्रकार विश्व के सबसे अधिक व्यस्त महासागर अटलांटिक महासागर के दोनों और विश्व के सम्पन्न देश स्थित है। इसकी आकृति अंग्रेजी के S अक्षर के समान है । इसमें मैक्सिको की खाड़ी, भूमध्य सागर, उत्तरी सागर, बिस्के की खाड़ी, बाल्टिक सागर, कैरिबीयन सागर, काला सागर आदि स्थित है। यह महासागर विषुवत् रेखा पर काफी संकरा है । इसके दो भाग है- उत्तरी व दक्षिणी अटलांटिक महासागर | उत्तरी अटलांटिक महासागर 5400 किमी तथा दक्षिणी अटलांटिक महासागर 9600 किमी चौड़ा है। यहाँ पर अनेक द्रोणियाँ हैं जिनमें ब्राजील द्रोणी, कनारी द्रोणी, गिनी द्रोणी, उत्तरी अमेरिका द्रोणी प्रमुख हैं। इसके अलावा प्यूरटोरिको गर्त, रोमांशे गर्त प्रमुख गर्त है ।
हिन्द महासागर की स्थलाकृतियाँ –
- इस महासागर के उत्तर में गोंण्डवाना लैण्ड के भाग प्रायद्वीपीय भारत, अफ्रीका का पठार, आस्ट्रेलिया का पश्चिमी भाग, महाद्वीपीय मग्न स्थल रखते हैं।
- प्रमुख द्रोणियों में सेडमाली द्रोणी, अरेबियन द्रोणी, मॉरीशस द्रोणी, अण्डमान द्रोणी है तथा प्रमुख गर्तों में सुण्डा गर्त है। अण्डमान-निकोबार, जंजीबार, रियूनीयम प्रमुख द्वीप मौजूद है । यहाँ पर अनेक जगह भ्रंश व दरार घाटियाँ जलमग्न रूप में पाई जाती है ।
आर्कटिक महासागर की स्थलाकृतियाँ –
- उत्तरी ध्रुव पर स्थित इस महासागर के बारे में अभी विस्तृत जानकारी प्राप्त नहीं हुई है, क्योंकि इसका अधिकांश भाग वर्ष के अधिकतर समय बर्फ से ढका रहता है। इसका निमग्न स्थल काफी चौड़ा है। इस महासागर पर कई द्वीप हैं, जिनमें बेरन्टस, होप, स्पीट्स बर्जन, नोवाया आदि प्रमुख है । नार्वे सागर, लेपटेव सागर, पूर्वी साइबेरिया सागर व ग्रीनलैण्ड सागर प्रमुख है। यहाँ पर अनेक जलमग्न कटक मौजूद है ।
महासागर की उच्चावच –
- पृथ्वी के धरातल की भौतिक आकृतियाँ – पर्वत, पठार, मैदान और पठार अर्थात धरातलीय भूदृश्य को उच्चावच कहते हैं। प्रायः यह शब्द पृथ्वी के धरातल के रूप में आकृति में असमानताएँ और भिन्नताओं को स्पष्ट करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है। महासागरीय नितलों पर अनेक प्रकार के उच्चावच के लिए चार प्रमुख प्रक्रियाएँ उत्तरदायी है। यह उच्चावच विर्वतनिक, ज्वालामुखी, अपरदनकारी तथा निक्षेपकारी प्रक्रियाओं के पारस्परिक क्रियाओं के कारण उत्पन्न होता है।
- महासागर तल या तली के विन्यास तथा उच्चावच लक्षणों से अभिप्राय महासागरों में जल के नीचे के भू-पृष्ठ की रचना से है अर्थात समुद्रों के पेंदे पर ऊँचाईयों एवं गहराईयों का विस्तार कितना – कितना है । महासागर भी महाद्वीपों की तरह प्रथम श्रेणी के उच्चावच है । स्थल की ऊँचाई व महासागरों की गहराई को उच्चतादर्शी वक्र द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। इस आधार पर महासागरीय तली को निम्न चार उच्चावच वर्गों में विभाजित किया गया है ।
1. महाद्वीपीय मग्न तट
2. महाद्वीपीय ढाल
3. गहरे सागरीय मैदान
4. महासागरीय गर्त
1. महाद्वीपीय मग्न तट :
- इसका अर्थ डूबे हुए तट से होता है । अतः महाद्वीपों के वे भाग जो समुद्र में डूबे हैं, महाद्वीपीय मग्न तट कहलाते हैं। इनकी अधिकतम गहराई सामान्यतः 100 फैदम और ढलान 12 से 3° तक होती है। कम ढाल वाले मग्न तट की चौड़ाई अधिक तथा अधिक ढाल वाले मग्न तट की चौड़ाई कम होती है। इसकी औसत चौड़ाई 75 किमी होती है । ये तट महासागरों के कुल क्षेत्रफल के 7.6 प्रतिशत भाग फैले हुए हैं। इस भाग में सूर्य की किरणें प्रवेश कर जाने से वनस्पति व जीव जन्तुओं की वृद्धि होती है। नदियों द्वारा लाई गई तलछट यहीं पर जमती है। इसलिए समुद्र का यह भाग मानव के लिए काफी लाभदायक है। यहाँ पर अनेक खनिज, खाद्य पदार्थ, मत्स्य, खनिज तेल, गैस इत्यादि प्रमुख रूप से पाए जाते हैं ।
2. महाद्वीपीय ढालः
- महाद्वीपीय मग्न तट के आगे महासागरीय नितल का ढाल अचानक तीव्र हो जाता है । इन ढालों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनका विस्तार 3600 मीटर से 8100 मीटर की गहराई तक होता है । यहाँ पर काँप मिट्टी का निक्षेप बहुत कम पाया जाता है । प्रकाश की कमी तथा पोषक पदार्थों के अभाव में यहाँ वनस्पति व समुद्री जीवों की मात्रा कम पाई जाती है। महासागरों के कुल क्षेत्रफल के 8.5 प्रतिशत भाग पर ये ढ़ाल पाये जाते हैं । इनका ढाल 2° से 5° तक होता है ।
3. गहरे सागरीय मैदान :
- महाद्वीपीय ढाल के समाप्त होते ही ढाल एकदम कम हो जाती है और गंभीर सागरीय मैदान शुरू हो जाते हैं, जिसे नितल मैदान भी कहते हैं । महासागरों का यह एक विस्तृत समतल क्षेत्र होता है, जिसका ढाल बहुत कम होता है। यहाँ पर अपरदन प्रक्रमों का अभाव पाया जाता है ।
4. महासागरीय गर्त :
- इसका तात्पर्य महासागरों के नितल पर पाये जाने वाले सबसे अधिक गहरे गर्तों से है । आकार के आधार पर इनको दो वर्गों में विभाजित किया जाता है- 1. खाईयाँ तथा 2. द्रोणियाँ। महासागरीय नितल पर स्थित तीव्र ढाल वाले लम्बे, पतले तथा गहरे अवनमन को खाई या गर्त कहते हैं। इनकी उत्पत्ति बलन अथवा भ्रंश से होती है। इनकी औसत गहराई 5500 मीटर होती है। ये सागरीय केनियन भी कहलाते है । प्रमुख उदाहरण मेरियाना, चेलेन्जर, टोंगा और सुण्डा आदि ।
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