महासागर संसाधन, प्रकार, उदाहरण, विशेषताएँ और गठन (Oceanic Resources Notes in Hindi)

Oceanic Resources Notes in Hindi

महासागरीय संसाधन ( Oceanic Resources )

  • पृथ्वी के धरातल के कुल क्षेत्रफल के लगभग प्रतिशत भाग पर महासागरों का तथा शेष 29 प्रतिशत भाग पर स्थल का विस्तार है। पृथ्वी की सतह पर महासागरों का फैलाव पाया जाता है जिसमें महाद्वीपों की उपस्थिति से विश्व महासागरों को तीन मुख्य तथा एक गौण महासागरों में विभक्त किया गया है। इनमें प्रशान्त महासागर, अटलांटिक महासागर तथा हिन्द महासागर मुख्य है। चौथा महासागर आर्कटिक महासागर है जिसकी गहराई तथा क्षेत्रफल अन्य महासागरों की अपेक्षा बहुत कम है। सभी महासागरों में प्रशान्त महासागर विश्व का सबसे बड़ा तथा सर्वाधिक गहरा महासागर है ।
  • महासागर प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों ही रूपों में मानव को प्रभावित करते हैं । महासागरों की विशाल जल राशि हमारे लिए कई चुनौतियाँ एवं संसाधन प्रस्तुत करती है । महासागरों में अनेक प्रकार के खनिज तथा ऊर्जा के संसाधन मौजूद है।

महासागरों का महत्वः

  • महासागर हमें अनेक प्रकार के संसाधन उपलब्ध करवाते हैं । साथ ही महासागर हमारी जलवायु पर प्रभाव डालते हैं तथा परिवहन के सबसे सस्ते साधन है। समुद्री खनिज, भोजन, ऊर्जा तथा महासागरीय परिवहन महासागर के प्रत्यक्ष लाभ है जबकि महासागरों से जलवायु पर प्रभाव परोक्ष लाभ है। स्थल से प्राप्त संसाधन समाप्त प्राय है । ऐसी स्थिति में महासागर ही भविष्य के भण्डार है। महासागरों की समीपता मानव के स्वास्थ्य के लिए अनुकूल है। सागरों द्वारा मनोरंजन, दृश्यावलोकन, खेल, तैराकी, नौकायन आदि होता है । महासागरों का मानव सभ्यता पर गहरा प्रभाव पड़ता है । महाद्वीपों पर वर्षा का मूल स्रोत महासागर ही है । अतः महासागरों का मनुष्य के लिए अपार महत्व है ।

महासागरों की उपयोगिता:

  • विश्व में जनसंख्या की नीव वृद्धि से खाद्यान तथा प्राकृतिक संसाधनों के अभाव का संकट उत्पन्न होना निश्चित है। महासागर मानव जाति को इस भयावह संकट से निकालने में सक्षम है।

महासागरीय संसाधनः महासागरीय संसाधनों को निम्न भागों में बाँटा गया है :

(1) महासागर एवं खनिज संसाधन
(2) महासागर एवं खाद्य संसाधन
(3) महासागर एवं ऊर्जा संसाधन
(4) महासागर एवं पेयजल संसाधन
(5) महासागर एवं यातायात, व्यापार
(6) महासागर एवं सामरिक महत्त्व

1. महासागर एवं खनिज संसाधन :

  • सागर की तली एवं उसके जल में अनेक प्रकार के खनिज संसाधन मौजूद है परन्तु उनका विदोहन बहुत सीमित है । एक अनुमान के अनुसार एक घन किलोमीटर समुद्री जल में 50 टन चाँदी, 25 टन सोना 11 से 35 टन ताँबा, मैगनीज, जिंक तथा सीसा, 8 टन यूरेनियम, 42 टन पौटेशियम सल्फेट, 185 लाख टन मैग्नीशियम क्लोराइड, अनेक खनिज व रासायनिक तत्व विद्यमान है । प्रमुख खनिज संसाधन निम्नांकित है ।
  • खनिज तेलः यह महासागरों से प्राप्त होने वाला सबसे महत्वपूर्ण संसाधन है। विश्व के 40 प्रतिशत खनिज तेल भण्डार समुद्री नितल में है। विश्व के अनेक देश समुद्रों से तेल प्राप्त कर रहे हैं। भारत में भी समुद्र तट से 150 किमी दूर बोम्बे हाई पर 2000 मीटर की गहराई से खनिज तेल निकाला जा रहा है।
  • फॉस्फेट : खनिज से युक्त असंगठित तलछटी निक्षेप को फास्फोराइट कहते हैं। महासागरों में यह सामान्यतः गाँठों के रूप में मिलता है ।
  • मैंगनीज : इसकी गाँठों से उतना ही निकिल तथा ताँबा प्राप्त होता है जितना ही स्थलीय संसाधनों से प्राप्त हो सकता है। यह प्रशान्त महासागर में सबसे अधिक पाया जाता है।
  • नमक : समुद्रों से प्राप्त होने वाला एक महत्वपूर्ण खनिज है । महासागरीय जल खारा होता है। इसमें धुले लवणों की मात्रा 3.5 प्रतिशत होती है। कुल लवणों का 78 प्रतिशत सोडियम क्लोराइड़ (खाने योग्य नमक) होता है जिसे वाष्पीकृत करके खाने का नमक बनाया जाता है । विश्व में प्रतिवर्ष 200 मिलियन डॉलर मूल्य का नमक बनाया जाता है ।
  • अन्य खनिज : अन्य खनिज संसाधनों में रेत, बजरी, सोना, प्लेटिनम, टिन, मैग्नेटाइट, लोहा, टंग्स्टन, थोरियम महत्वपूर्ण है।

2. महासागर एवं खाद्य संसाधन:

  • विश्व के कुल खाद्य पदार्थों का लगभग 10 प्रतिशत महासागरों से प्राप्त किया जाता है। मछली एक उत्तम प्रोटीनयुक्त आहार है जो महासागरीय संसाधन है। मत्स्य उत्पादन विश्व का प्रमुख व्यवसाय है। विश्व के अनेक समुद्रतटीय देश इस व्यवसाय में प्रमुख रूप से जुड़े हैं। उनकी आजीविका का प्रमुख साधन मत्स्य संसाधन है। मछली के अलावा अनेक प्रकार के शैवाल, पादप, प्लवक, मोलस्क, अनेक समुद्री जीव भी समुद्रों से प्राप्त किये जाते हैं। महासागरों में पाये जाने वाले कोरल (मूंगा / प्रवाल) जीवों को आश्रय एवं खाद्य पदार्थ प्रदान करते है। बढ़ते प्रदुषण के कारण कोरल (Coral) भण्डार का अस्तित्व खतरे में है। रासायनिक प्रदुषण के कारण इनका प्राकृतिक रंग बदल रहा है।

3. महासागर एवं ऊर्जा संसाधन:

  • महासागर पृथ्वी द्वारा प्राप्त सूर्यातप का लगभग तीन-चौथाई भाग अवशोषित करते हैं । इस ऊर्जा से पवनें एवं समुद्री धाराएँ चलती है तथा समुद्री जल के तापमान में वृद्धि करती है। इससे ऊर्जा प्राप्त होती है। महासागरों से प्राप्त ऊर्जा में ज्वारीय ऊर्जा, सागरीय ताप ऊर्जा तथा भू-तापीय ऊर्जा प्रमुख है। ज्वारभाटा से ज्वारीय ऊर्जा प्राप्त कर विद्युत उत्पादन किया जाता है । भारत में खम्भात की खाड़ी, कच्छ की खाड़ी से विद्युत उत्पादन की जा सकती है। समुद्र से उठने वाली तरंगों से भी विश्व के अनेक देशों में ऊर्जा प्राप्त की जा रही है। ज्वालामुखी के विस्फोट से भूतापीय ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है ।

4. महासागर एवं पेयजल संसाधन:

  • महासागरों का जल पीने योग्य नहीं होता, किन्तु भविष्य में इसका उपयोग पीने व घरेलू कार्यों के अतिरिक्त उद्योगों आदि में भी किया जा सकेगा। इस खारे जल को पीने योग्य बनाया जाना आवश्यक होगा। इसके लिए विश्व में लगभग 500 संयंत्र लगाये जा चुके हैं। खाड़ी देशों में इस प्रकार के संयत्र बड़ी संख्या में लगाये गये हैं ।

5. महासागर एवं यातायात व व्यापार :

  • प्राचीन काल में महासागर दो भू-भागों के मध्य बाधक माने जाते थे, परन्तु अब ये सबसे सरल और सस्ते यातायात की सुविधा प्रदान करते है । ये प्रकृति द्वारा प्रदत्त हाई-वे हैं । जल की सतह समतल होती है, अतः इस पर प्रवर्तक बल कम खर्च करना पड़ता है। महासागर ऐसे आवागमन के मार्ग प्रस्तुत करते हैं, जिनका स्वतन्त्रतापूर्वक उपयोग किया जा सकता है, क्योंकि इन पर किसी देश का अधिकार नहीं होता । विश्व में कई प्रमुख अन्तर्राष्ट्रीय जल मार्ग है । अन्तर्राष्ट्रीय जलमार्गों में उत्तरी अटलाण्टिक जलमार्ग सबसे प्रमुख है। यह जलमार्ग उत्तरी अमेरिका को पश्चिमी यूरोपीय देशें से जोड़ता है। भार के अनुसार विश्व में किये गये कुल सामुद्रिक व्यापार का चौथाई व्यापार केवल इसी जलमार्ग पर होता है । इस सामुद्रिक व्यापार का सर्वोच्च महत्त्व इसलिए भी है कि यह दो उद्योग प्रधान क्षेत्रों को परस्पर जोड़ता है। विश्व का प्रमुख अन्तर्राष्ट्रीय जलमार्ग स्वेज जलमार्ग है जो लन्दन को टोकियो से जोड़ता है। आशा अन्तरीप से होकर यह जल मार्ग काफी लम्बा पड़ता है । है

6. महासागर एवम् सामरिक महत्त्व :

  • महासागर विभिन्न महाद्वीपों के मध्य सम्पर्क में अवरोध माने जाते थे, किन्तु नौसंचालन के विकास के साथ-साथ इनके व्यापारिक एवम् सामरिक महत्त्व में वृद्धि हुई है, इसके कई कारण है । विभिन्न देश महासागरों में खनिजों के दोहन के लिए अपना प्रभुत्व बढ़ाना चाहते है । आज के युग में बढ़ती आर्थिक गतिविधियों एवम् प्रतिस्पर्द्धाओं के कारण नौसेना के महत्त्व में काफी वृद्धि हुई है । अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत हिन्द महासागर को नौसैनिक प्रतिस्पर्धाओं से स्वतन्त्र रखने के लिए प्रयासरत है । वर्तमान में बढ़ते अर्राष्ट्रीय तनावों के कारण नौसैनिक गतिविधियों का काफी विस्तार हुआ है। पाकिस्तान को मोहरा बनाकर कई बड़े देश विशेषकर अमेरिका, चीन व रूस हिन्द महासागर में अपना प्रभुत्व बढ़ाने में लगे हुए है। इन बाहरी एवम् दूरस्थ देशों का हिन्द महासागर में अनावश्यक रूप से बढ़ता प्रभुत्व हमारे देश के लिए संकटपूर्ण व चुनौतीपूर्ण हो सकता है तथा इस क्षेत्र में अस्थिरता पैदा कर सकता है, हमारे देश को इस प्रकार की बदनियत के प्रति सतर्क रहना चाहिए। ताकि हमारे देश की प्रगति बाधित हो सके ।

महत्त्वपूर्ण बिन्दु –

1. महासागर पृथ्वी की जलवायु एवं मौसम को बहुत गहराई तक प्रभावित करते है। सभी प्रकार के संचलन में महासागरों का महत्त्वपूर्ण स्थान है ।
2. महासागर संसाधनों के भण्डारगृह है। यहां जैविक एवं अजैविक दोनो प्रकार के संसाधन पाये जाते है ।
3. महासागर उर्जा, यातायात एवं व्यापार में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते है। यहाँ से खनिज तेल प्राप्त किया जाता है ।
4. औद्योगिक विकास के कारण वर्तमान में महासागर विभिन्न प्रदुषण के शिकार हो रहे है। इससे जैविक संसाधनों को हानि हो रही है।
5. महासागरों में पाये जाने वाले प्रवाल / मूंगा जीव तथा प्रवाल भित्ति का रासायनिक प्रदुषण के कारण मूल रंग बदल रहा है तथा इनकी वृद्धि भी प्रभावित हो रही है।

Geography Notes पढ़ने के लिए — यहाँ क्लिक करें !

 

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Leave A Comment For Any Doubt And Question :-

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *