मुगल वंश | मुगल प्रशासन
केन्द्रीय प्रशासन
- केन्द्रीय प्रशासन में सर्वप्रथम व्यक्ति सम्राट होता था।
- मुगल सम्राट सम्प्रभुता संपन्न शासक थे।
- राज्य की समस्त सैनिक असैनिक शक्तियाँ सम्राट में निहित थीं।
सम्राट के पदाधिकारी एक दृष्टि में |
1. वजीर प्रधानमंत्री 2. शाहीदीवान वित्त मंत्री 3. मीर बख्शी सैन्य विभाग का अध्यक्ष 4. सद्र-उस-सुदूर धार्मिक मामलों का मंत्री 5. काज़ी-उल-कुजात न्याय विभाग का अध्यक्ष 6. मीर-ए-सामां शाही घराने की देखभाल करने वाला 7. मीर-ए-आतिश तोपखाने का प्रमुख अधिकारी 8. मीर-ए-बहर जलबेड़े का प्रमुख अधिकारी 9. मीर-ए-मुंशी पत्राचार विभाग का अधिकारी 10. दरोगा-ए-डाकचौकी डाक एवं गुप्तचर विभाग का प्रमुख 11. मुहतसिब धार्मिक अधिकारी |
प्रान्तीय प्रशासन
- मुगल काल में प्रान्तीय प्रशासन को व्यवस्थित करने का श्रेय अकबर को जाता है।
- प्रान्तीय प्रशासन केन्द्रीय प्रशासन का प्रतिरूप था।
जिले का प्रशासन
- जिले को सरकार कहा जाता था।
- प्रत्येक सूबा अनेक जिले में विभक्त था।
- यहां कई अधिकारियों की नियुक्ति की जाती थी।
मनसबदारी व्यवस्था
- मनसब फारसी भाषा का शब्द है जिसका तात्पर्य है किसी व्यवस्था में किसी का स्थान अर्थात् किसी सरकारी सेवा में मनसब उसकी स्थिति का सूचक है।
- मध्य एशिया में सर्वप्रथम मंगोलों ने यह व्यवस्था शुरु की थी।
- भारत में इस व्यवस्था को अकबर 1575 में प्रारंभ किया।
- अकबर से पहले मध्यकालीन व्यवस्था में सरकारी सेवकों के तीन वर्ग थे1. सैनिक अधिकारी 2. लेखा अधिकारी 3. बुद्धि जीवी वर्ग
- अकबर ने इन तीनों को मिला दिया और सभी मनसबदार कहलाये।
- अकबर ने सभी को एक-एक मनसब दिया जो उनकी स्थिति के सूचक थे।
- अबुल फजल ने उल्लेख किया है कि सम्राट ने 66 प्रकार के मनसब का निर्माण किया जो 10 से लेकर 10 हजार तक थे। बाद में मनसब बढ़ाया गया।
मनसबदारी व्यवस्था के दो मुख्य सिद्धांत थे
- (i) सभी मनसबदार व्यक्तिगत रूप से सम्राट के अधीन थे।
- (ii) प्रत्येक मनसबदार को दो पद दिये जाते थे
1. जातपद :-मनसबदार का व्यक्तिगत दर्जा था जो उसकी वरिष्ठता का सूचक था। जातपद से ही उसका वेतन निर्धारित होता था।
2. सवारपद—इससे एक मनसबदार को कितने घोड़े तथा घुड़सवार रखना है, यह निर्धारित होता था। - जहांगीर ने सवार पद में ‘द-अस्पा’ एवं ‘सिंह अस्पा’ की व्यवस्था की।
- अस्पा से तात्पर्य है एक सवार के पास दो घोड़े और सिंह-अस्पा से तात्पर्य है एक सवार के पास तीन घोड़े। मनसबदारी व्यवस्था
- वंशानुगत नहीं थी बल्कि योग्यत मुख्य आधार था। भू-राजस्व व्यवस्था
- मुगल काल में अकबर के समय भू-राजस्व व्यवस्था में सुधार हुआ।
- अकबर ने टोडरमल को शाही दीवान के पद पर नियुक्त किया।
- टोडरमल ने 1580 में आइने-ए-दहशाला नामक व्यवस्था प्रारम्भ की जो जाब्ती प्रणाली का उत्तम रूप था।
- इसके अन्तर्गत प्रत्येक परगने के कानूनगो को यह निर्देश दिया गया कि भूमि को 4 वर्गों में विभक्त करें
1. पोलज–प्रत्येक वर्ष खेती हो।
2. परती—जिसमें 1 वर्ष छोड़कर खेती की जाये।
3. चाँचर—जिसमें 3 या 4 वर्ष में खेती हो।
4. बंजर—जिसमें 5 वर्ष से खेती न हुई हो। - अकबर भू-राजस्व के अतिरिक्त प्रत्येक बीघा पर 10 सेर अनाज लेता था जिसे दहसेरी कर कहते थे। अकबर ने अजमेर में भू-राजस्व घटाकर 1/7 अथवा 1/ 8 कर दिया।
- औरंगजेब के समय में भू-राजस्व 1/2 लिया जाता था।
मुद्रा प्रणाली
- मुगल काल में सोने, चांदी एवं तांबे की मुद्राओं का प्रचलन था। मुगल कालीन मुद्रा गोल एवं चौकोर होती थी जिनमें टकसाल का नाम, सम्राट का नाम और जारी किए गए वर्ष का नाम अंकित होता था।
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