British-Sikh War in Hindi | By- Exam Sector
सिक्ख और अंग्रेज ( British-Sikh War )
- सिक्खों के दसवें व अन्तिम गुरु गोविन्द सिंह ने सिक्खों को सैनिक शक्ति के रूप में संगठित किया था। 18वीं शताब्दी के मध्य में पंजाब के मुगल सूबेदारों व अफगानिस्तान के शासकों से अपने जान-माल की रक्षा करने के लिए सिक्खों ने अपने आपको 100-100 व्यक्तियों के दलों में संगठित कर लिया था। 12 जत्थों में विभाजित दलों को मिसलों के नाम से ख्याति प्राप्त हुई। सभी मिसलों के नेताओं की एक समिति “दल खालसा’ गठित की गई। सिक्ख नेताओं में आपसी झगड़े उत्पन्न हुए व रणजीत सिंह ने एक शक्तिशाली सिक्ख राज्य की स्थापना की।
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प्रथम सिक्ख युद्ध (1845-46 ई.)-
- खालसा की सेना ने अमृतसर संधि का उल्लंघन करते हुए सतलज नदी को 13 दिसम्बर, _1845 को पार किया। लार्ड हार्डिंग ने संधि की अवज्ञा को तात्कालिक कारण का स्वरूप देते हुए युद्ध की घोषणा कर दी। सिक्खों ने काफी वीरता का प्रदर्शन किया किन्तु कुशल नेतृत्व के अभाव में उन्हें पराजित होना पड़ा।
- प्रथम आंग्ल-सिक्ख युद्ध की समाप्ति मार्च, 1846 ई. की लाहौर सन्धि से हुई। जिसके तहत पंजाब में अंग्रेज रेजीटेल हेनरी लारेन्स ने अपना पूर्ण प्रभाव और नियन्त्रण स्थापित कर लिया।
द्वितीय आंग्ल-सिक्ख युद्ध-
- लाहौर की संधि और भैरोवाल की संधि सिक्खों के लिए पूर्ण रूप से अपमानजनक थी। संधि के बाद सैनिकों को सेवामुक्त कर दिया गया जिससे वे रुष्ट थे। सैनिकों तथा राजपरिवार के विक्षुब्धों ने षड्यन्त्र शुरु कर दिया। इसी क्रम में कई घटनाएं हुई। अंतत: 21 फरवरी, 1849 को अंग्रेजों ने “गुजरात युद्ध” में सिक्खों को बुरी तरह पराजित किया तथा गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी ने पंजाब राज्य को ब्रिटिश राज्य के अन्तर्गत अधिग्रहित कर लिया।
सहायक संधि-
- वेलेजली कम्पनी के प्रभुत्त्व तथा प्रभाव को देशी राज्यों पर बढ़ाना चाहता था ताकि कम्पनी की साधन सामग्री में वृद्धि हो सके, अन्य यूरोपियनों को भारतीय रियासतों से निकाल सके और उनके पारस्परिक झगड़ों में कम्पनी मध्यस्थ का कार्य कर सके। वेलेजली ने अपने इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए जो नीति निर्धारित की उसके प्रारूप को ही इतिहास में सहायक सन्धि कहते हैं। यह सन्धि देशी राज्यों और कम्पनी के बीच होती थी। वेलेजली की सहायक सन्धि की प्रमुख शर्ते निम्न थीं
सिक्खों और अंग्रेजों के बीच प्रमुख युद्व से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य
- इस सन्धि के अन्तर्गत राज्य को अंग्रेजों का प्रभुत्व स्वीकार करना पड़ता था जिसके कारण वह न तो अन्य राज्य से युद्ध कर सकता था और न कोई राजनैतिक समझौता कर सकता था।
2. सन्धि को स्वीकार करने वाले राज्य को अपने राज्य में अंग्रेजी सेना रखनी पड़ती थी व उसका खर्चा अंग्रेजों को देना होता था।
3. राज्य अंग्रेज कम्पनी की अनुमति के बिना अंग्रेजों के अतिरिक्त अन्य किसी यूरोपियन को अपनी सेना में नहीं रख सकता था।
4. राज्य की सुरक्षा का दायित्व कम्पनी ग्रहण करती थी।
5. राज्य को अपने दरबार में अंग्रेज रेजीडेन्ट रखना पड़ता था और शासन कार्य में शासक को उससे परामर्श लेना पड़ता था।
6. इस सन्धि को स्वीकार करने वाले राज्य को कम्पनी यह आश्वासन देती थी कि वह उस राज्य के आन्तरिक मामला में हस्तक्षेप नहीं करेगी।
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