मानव स्वास्थ्य (Human health) Notes in Hindi

मानव स्वास्थ्य (Human health) Notes in Hindi

मानव स्वास्थ्य (Human health) Notes in Hindi

1 पीने योग्य पानी के गुण व दूषित पानी के दुष्प्रभाव (Properties of Drinking water and harmful effects of polluted water) :- 

  • हम इन्सान इतने कम उपलब्ध जल के स्त्रोंतों का इस तरह से दोहन कर रहे है कि जल्द ही हमारे सामने जल संकट अपने विकराल रूप में मौजूद होगा । हमारे उपयोग का लगभग सारा जल नदियों, झीलों या भूमिगत स्त्रोतों से आता है। हम जल के उपयोग के साथ उसे प्रदूषित भी करते है, इस तरह हम द्विधारी तलवार से अपने जीवनदाता पर वार कर रहे है। जल की उपयोगिता की चर्चा करना व्यर्थ है यदि कहूँ कि “जल ही जीवन” है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी । जल का उपयोग पीने, भोजन बनाने, नहाने, बर्तन व कपड़े धाने, कृषि व उद्योगों में किया जाता है। जल पृथ्वी पर पाई जाने वाली एक मात्र ऐसी चीज है जो पदार्थ की तीनों अवस्था, ठोस (बर्फ), तरल (जल) और गैस (जलवाष्प) रुपों में एक साथ प्राकृतिक तौर पर मौजूद है। जो जल हमें मिलता है, उसमें कई तरह के कण व सूक्ष्म जीव होते है उनमें से कुछ हमें फायदा पहुँचाते है तो कुछ हमारा नुकसान भी करते है।

मानव स्वास्थ्य (Human health) Notes in Hindi

पीने योग्य जल में निम्न गुण होने चाहिए-

  • जल में आँखों से दिखने वाले कण और वनस्पति नहीं हो, हानि पहुँचाने वाले सूक्ष्म जीव नहीं हो, जल का pH संतुलित हो, जल में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन घुली हो । हमारा शरीर कई तरह की जिम्मेदारियाँ निभाता है जल इस काम में शरीर की मदद करता है शरीर की समस्त उपापचयी क्रियाएँ जल के द्वारा ही सम्पादित होती है । इसलिए डॉक्टर भी अक्सर मशवरा देता है की एक दिन में कम से कम 8 गिलास पानी पीना चाहिए। यदि आप शारीरिक श्रम ज्यादा करते हो तो आपको ज्यादा मात्रा में पानी पीना चाहिए | सही मात्रा में पानी पीने से शरीर का उपापचय सही तरीके से काम करता है। प्रत्येक दिन 8-10 गिलास पानी पीने से शरीर में रहने वाले जहरीले पदार्थ बाहर निकल जाते है, जिससे शरीर रोग मुक्त रहता है, शरीर में पर्याप्त मात्रा में पानी रहने से शरीर में चुस्ती और ऊर्जा बनी रहती है, थकान का अहसास नहीं होता है। पानी से शरीर में रेशो (फाइबर) की पर्याप्त मात्रा कायम रहती है, जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और बीमारियाँ होने का खतरा कम रहता है । प्रचुर मात्रा में पानी पीने से शरीर में अनावश्यक चर्बी जमा नहीं होती है, उचित मात्रा में पानी पीने से शरीर में किसी प्रकार की एलर्जी होने की आशंका कम हो जाती है, साथ ही फेफड़ो में संक्रमण, अस्थमा और आंत की बीमारियाँ आदि भी नहीं होती है। नियमित भरपूर पानी पीने से पथरी होने का खतरा भी टला रहता है, पर्याप्त मात्रा में पानी पीने वाले को सर्दी जुकाम जैसे रोग नहीं घेरते है ।

दूषित जल के दुष्प्रभाव इस प्रकार हैं-

  • यदि पीने का पानी दूषित है तो कई बीमारियाँ चपेट में ले सकती है। ये बीमारियाँ पानी में रहने वाले रोग कारक सूक्ष्म जीवों के कारण होती है जो पानी के साथ शरीर में प्रवेश कर जाते है जिनमें विषाणु, जीवाणु, प्रोटोजोआ, कृमि आदि प्रमुख है । जिनकी वजह से हैजा, पेचिस जैसी बीमारियाँ आसानी से किसी को भी शिकार बना सकती हैं। गंदे पानी से कई प्रकार की संक्रामक बीमारियाँ फैलती है। गंदे पानी से वायरल संक्रमण भी हो सकता है। वायरल संक्रमण के कारण हिपेटाइटिस, फ्लू, कोलेरा, टायफाइड और पीलिया जैसी खतरनाक बीमारियाँ होती है। बाला या नारु रोग एक समय राजस्थान में गंभीर समस्या थी। इसका रोगजनक ड्रेकनकुलस मेडीनेंसिस नामक कृमि है, इसकी मादा कृमि अपने अंडे सदैव परपोषी (मनुष्य) के शरीर के बाहर जल में देती है, ऐसे संदूषित जल के उपयोग से यह रोग दूसरे लोगों में भी फैल जाता है। नारु उन्मूलन कार्यक्रम के प्रयासो से सन् 2000 के पश्चात् इसका कोई रोगी नहीं पाया गया परन्तु फिर भी इस रोग के पुनः उद्भवन को रोकनें एवं जल-जनित रोगों से बचाव हेतु पानी को छानकर, उबालकर एवं ठंडा कर पीना चाहिए। नदी, तालाब इत्यादि में नहाना एवं कपड़े धोना मना हो एवं समय-समय पर इनकी सफाई होनी चाहिए क्योकि “स्वच्छ जल है तो स्वस्थ कल है” ।

2 मोटापा (Obesity)

  • मोटापा वो स्थिति होती है जब अत्यधिक शारीरिक वसा शरीर पर इस सीमा तक एकत्रित हो जाती है कि वह स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालने लगती है। यह संभावित आयु को घटा सकता है। शरीर भार सूचकांक (Body mass index:BMI) मानव भार व लम्बाई का अनुपात होता है। जब 25 किग्रा / मी’ के बीच हो तब मोटापा पूर्व स्थिति और जब ये 30 किग्रा / मीर से अधिक हो तब मोटापा होता है।
  • मानव स्वास्थ्य (Human health) Notes in Hindi
    मोटापा बहुत से रोगों से जुड़ा है जैसे हृदय रोग, मधुमेह, निद्राकालिन श्वास समस्या, कई प्रकार के कैंसर और अस्थिसंध्यार्थी । मोटापे के कई कारण हो सकते है इनमें से प्रमुख है-
  • मोटापा और शरीर का वजन बढ़ना, ऊर्जा के सेवन और उर्जा के उपयोग के बीच अंसतुलन के कारण होता है | अधिक चर्बी युक्त भोजन करना, जंक फूड व कृत्रिम भोजन करना, कम व्यायाम और स्थिर जीवनयापन, शारीरिक क्रियाओं के सहीं ढंग से नहीं होने पर भी शरीर पर चर्बी जमा होने लगती है, अवटु अल्पक्रियता (हाइपोथाईरायडिज्म) आदि ।

3 रक्तचाप (Blood pressure )

  • रक्तवाहिनियों में बहते रक्त द्वारा वाहिनियों की दीवारों पर डाले गए दबाव को रक्तचाप कहते है। धमनियाँ वह नलिकाएँ है जो हृदय से रक्त को शरीर के सभी ऊतकों और अंगों तक ले जाती है । किसी व्यक्ति का रक्तचाप सिस्टोलीक डायस्टोलिक रक्तचाप के रुप में अभिव्यक्त किया जाता है जैसे 120/80, सिस्टोलिक अर्थात ऊपर की संख्या धमनियों के दाब को दर्शाती है इसमें हृदय की मासपेशियाँ संकुचित होकर धमनियों में रक्त को पम्प करती है, डायास्टोलिक रक्तचाप अर्थात नीचे वाली संख्या धमनियों में उस दाब को दर्शाती है जब संकुचन के बाद हृदय की मांसपेशियाँ शिथिल हो जाती है।
  • एक सामान्य व्यक्ति का सिस्टोलिक रक्तचाप पारा के 90 और 120 मिलीमीटर के बीच तथा डायास्टोलिक रक्तचाप पारा के 60-80 मिलीमीटर के बीच होता है, रक्तचाप को मापने वाले यंत्र को रक्तचापमापी (स्फाइग्नोमैनोमीटर) कहते है । 1733 मे स्टीफन हेल्स ने पहली बार रक्तचाप घोड़ो में मापा, 1983 में कापलन ने रक्तचाप को परिभाषित किया।

मानव स्वास्थ्य (Human health) Notes in Hindi
निम्न रक्तचाप –

  • वह दाब जिसमें धमनियों और नसों में रक्त का प्रवाह कम होने के लक्षण या संकेत दिखाई देते है । जब रक्त का प्रवाह काफी कम होता है तो मस्तिष्क, हृदय तथा गुर्दे जैसी महत्वपूर्ण इन्द्रियों में ऑक्सीजन व पौष्टिक आहार नही पहुँच पाते है जिससे यह अंग सामान्य रुप से काम नही कर पाते है और स्थाई रुप से क्षतिग्रस्त हो सकते हैं।

उच्च रक्तचाप –

  • धमनियों में अधिक दाब के कारण है । यह चिंता, क्रोध, ईर्ष्या, भ्रम, कई बार आवश्यकता से अधिक भोजन खाने से, मैदे से बने खाद्य पदार्थ, चीनी, मसाले, तेल, घी, अचार, मिठाइयाँ, माँस, चाय, सिगरेट व शराब के सेवन से, श्रमहीन जीवन व व्यायाम के अभाव से हो सकता है। उच्च रक्तचाप का समय पर निदान महत्वपूर्ण है ।

ऐसे मरीजों को पोटेशियम युक्त भोजन करना चाहिए जैसे ताजे फल, डिब्बे में बंद सामग्री का प्रयोग बंद कर दे, भोजन में कैल्शियम (दूध) और मैग्निशियम की मात्रा संतुलित करनी चाहिए, रेशे युक्त पदार्थ खूब खाए, संतृप्त वसा (मांस, वनस्पति घी) की मात्रा कम करनी चाहिए, इसके साथ ही नियमित व्यायाम करना चाहिए, खूब तेज लगातार 30 मिनट पैदल चलना सर्वोत्तम व्यायाम है, योग, ध्यान, प्रणायाम रोज करना चाहिए, धूम्रपान व मदिरापान नहीं करना चाहिए ।

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